द इंडियन व्यू डेस्क : केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने हाल ही में नई दिल्ली में रिवोल्यूशनरीज – दि अदर स्टोरी ऑफ हाऊ इंडिया वन फ्रीडम पुस्तक का विमोचन किया। इतिहास को बारीकी से पढ़ना और उसके संदेश को आने वाली पीढ़ियों में सटीक तरीके से देना हर पीढ़ी का दायित्व होता है।
गृह मंत्री ने इस अवसर पर कहा कि पूरा देश और सभी लोग वर्ष 1857 की क्रांति को गदर के नाम से जानते थे लेकिन पहली बार वीर सावरकर ने 1857 की क्रांति को सबसे पहला स्वतंत्रता संग्राम कहा और वहीं से नरेटिव को बदलने की शुरूआत की।
केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि अगर सशस्त्र क्रांति की समानांतर धारा ना चली होती तो स्वतन्त्रता में शायद कई दशक और लग जाते। पूरे देश में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने मात्र वंदे मातरम लिखकर चेतना को जागृत किया। ग़दर पार्टी के पूरे प्रयासों ने समग्र देश के अंदर अनेक स्थानों पर जबरदस्त सुषुप्त चेतना की जागृति और निर्माण किया जोकि एक बहुत बड़ा योगदान है। उन्होंने कहा कि इतिहास में इन प्रयासों को जो उचित सम्मान मिलना चाहिए दुर्भाग्य से वह नहीं मिला। श्री शाह ने कहा कि आजादी के बाद हमारे इतिहास को हमारे दृष्टिकोण से लिखने और हमारे स्वतंत्रता आंदोलन को भारतीय दृष्टिकोण से मूल्यांकन करके युवा बच्चों के सामने रखने की जिनकी जिम्मेदारी थी कि इसमें कहीं ना कहीं चूक हुई है।
अमित शाह ने कहा कि जब श्री नरेन्द्र मोदी जी गुजरात के मुख्यमंत्री बने तब उन्होंने श्री श्याम जी कृष्ण वर्मा की अस्थियां इतने सालों बाद वापस लाने का काम किया क्योंकि श्याम जी अपनी वसीयत में कहकर गए थे कि मेरी अस्थियों को देश आज़ाद होने के बाद ही प्रवाहित किया जाए। उन्होंने कहा कि इस प्रयास को कोई कैसे छुट-पुट प्रयास कह सकता है। ऐसे सभी लोगों ने आज़ादी के स्वप्न को आकार देने का काम किया और वीर सावरकर जैसे लोगों ने ज़मीन पर लड़ाई लड़ने का काम किया। श्री शाह ने कहा कि ये सारे प्रयास ना तो बिना सोच वाले थे, ना असंगठित थे और ना ही असफल थे। ये प्रयास एक सोची-समझी विचारधारा के आधार पर किए गए थे, संगठित थे और इन प्रयासों ने आंदोलन की सफलता में बहुत बड़ा योगदान दिया है जिसे कोई नहीं नकार सकता।