नई दिल्ली (शाश्वत तिवारी)। भारत को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के सुरक्षा मानकों के लिए यूनेस्को के 2003 के समझौते की अंतरसरकारी समिति में 2022-2026 की अवधि के लिए चुना गया है। भारत इससे पहले 2006 से 2010 और 2014 से 2018 तक दो बार अमूर्त सांस्कृतिक विरासत समिति का सदस्य रह चुका है।
कल्चरल डिप्लोमेसी की वजह से वैश्विक मंच पर मजबूत हुई भारत की स्थिति।
यूनेस्को के मुताबिक अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा मानकों के लिए अंतरसरकारी समिति का मुख्य कार्य समझौते के उद्देश्यों को पूरा करना सर्वश्रेष्ठ तौर-तरीकों पर दिशानिर्देश देना और अमूर्त सांस्कृतिक धरोहरों की सुरक्षा के लिए उपायों पर सिफारिश करना है। वर्ष 2003 के समझौते की अंतरसरकारी समिति में 24 सदस्य हैं।
आपको बता दें कि इस समिति में शामिल होने के लिए एशिया-प्रशांत समूह में चार सीट रिक्त थीं और छह देशों-भारत, बांग्लादेश, वियतनाम, कंबोडिया, मलेशिया एवं थाइलैंड ने अपनी उम्मीदवारी पेश की थी। जिसमें भारत को 155 देशों में से कुल 110 के वोट मिले।
पिछले कुछ सालों में भारत ने वैश्विक मंच पर जो अपनी पहचान बनाई है, उसके चलते न सिर्फ एशियाई बल्कि यूरोपीय और अन्य महाद्वीपों में भी भारत की अपनी स्थिति पहले से बहुत मज़बूत कर ली है। आज भारतीय संस्कृति और परम्पराओं को पूरे विश्व में वो सम्मान मिल रहा है जिसका वह हमेशा से हक़दार था। इस दिशा में विदेश मंत्रालय ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
भारत की सांस्कृतिक कूटनीति को आगे बढ़ाने में सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि पीएम मोदी के आह्वान के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में घोषित करना रहा। सांस्कृतिक कूटनीति को बढ़ावा देने में मोदी सरकार के कूटनीतिज्ञों ने भारत की सांस्कृतिक विरासत को मजबूत करने और बढ़ावा देने के लिए अपने संस्थागत तंत्र को पहले से बहुत मज़बूत कर लिया है।
यह भारत की विदेश नीतियों का ही नतीजा है कि आज देश उस मुकाम तक पहुँच चुका है, जहां उसके दुश्मन भी अब भारत के कायल हो चुके हैं। मोदी सरकार ने इस मिथक को तोड़ा की पश्चिमी संस्कृति के सापेक्ष हम अपनी महान संस्कृति को आगे नहीं बढ़ा सकते। कल्चरल डिप्लोमेसी को जो धार मोदी सरकार में मिली है, उससे भारत की वैश्विक छवि उभर कर सामने आई है।