पार्टी नेताओं की मांग उ०प्र० में रहकर पार्टी को मजबूत करें प्रियंका
लखनऊ (रविन्द्र शर्मा)। केंद्र की राजनीति में दूसरी बड़ी पार्टी की भूमिका निभाने वाली कांग्रेस उत्तर प्रदेश में सातवें नंबर की पार्टी बनकर मात्र दो सीटों पर सिमट चुकी है। उ०प्र० में कांग्रेस का यह हाल तब हुआ है जबकि गांधी परिवार की सबसे होनहार मानी जाने वाली प्रियंका गांधी वाड्रा की अगुवाई में विधान सभा चुनाव लड़ा गया। इसके बाद भी पार्टी के 387 प्रत्याशी अपनी जमानत नहीं बचा पाए। उ०प्र० में कांग्रेस की हुई करारी हार से प्रियंका गांधी वाड्रा को सदमा लगा है जिसके चलते वह उत्तर प्रदेश आना ही भूल गई हैं। करीब दो माह से वह उ०प्र० नहीं आई हैं। ऐसे में अब वह ट्वीट कर उ०प्र० की राजनीति में अपनी मौजूदगी का अहसास कराने का प्रयास कर रही हैं। प्रियंका गांधी के ऐसे प्रयासों के चलते ही उ०प्र० में ना तो पार्टी प्रदेश अध्यक्ष का चयन हो पा रहा है और ना ही पार्टी किसी मसले पर अपनी राय ही रख पा रही है।
प्रियंका चुनावी बयानबाजी करने के बजाय पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष चुने
प्रियंका गांधी के इस रुख से पार्टी के नेता हैरान हैं। पार्टी नेताओं के अनुसार उ०प्र० में पार्टी खत्म होने की कगार पर है लेकिन पार्टी के अंदर न साजिशें थम रही हैं और न गुटबाजी। कांग्रेस नेताओं का एक खेमा विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद से ही प्रियंका गांधी वाड्रा के खिलाफ साजिश में लगा हुआ है और अब राज्य में हुई चुनावी हार का ठीकरा उनके ऊपर फोड़ रहा है। यह वह नेता हैं जो प्रियंका गांधी को लंबे समय से राजनीति में लाने की मांग कर रहे थे, उन्हें इंदिरा गांधी की प्रतिमूर्ति बता रहे थे लेकिन जैसे ही कांग्रेस की रही-सही उम्मीद प्रियंका गांधी उ०प्र० विधानसभा चुनाव के अपने पहले बड़े टेस्ट में फेल हुईं, इन नेताओं ने विधानसभा चुनावों में प्रियंका की मेहनत और कोशिशों को नजरअंदाज कर उनकी कमियों पर चर्चा शुरू कर दी। दबी जुबान पार्टी के कुछ नेताओं का यहां तक कहना है कि सोशल मीडिया पर चुनावी बयानबाजी करने के बजाय प्रियंका गांधी को उ०प्र० में प्रदेश अध्यक्ष चुनना चाहिए। हैरानी की बात यह है कि अपनी बहन के साथ बेइंतहां दोस्ती और प्रेम दिखाने वाले राहुल गांधी भी पार्टी नेताओं के ऐसे बर्ताव पर चुप हैं। जबकि राहुल भी जानते हैं कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कुछ नेताओं की ओर से ही मीडिया में प्रियंका गांधी के नेतृत्व की असफलता को लेकर खबर प्लांट कराई जा रही है। पिछले तीन साल की कांग्रेस की हार और गड़बड़ियों का ठीकरा प्रियंका पर फोड़ने के लिए लोकसभा चुनाव का मुद्दा भी उठाया जा रहा है और याद दिलाया जा रहा है कि कैसे प्रियंका ने अमेठी और रायबरेली में चुनाव लड़वाया और राहुल को अमेठी जैसी सीट से नहीं जिता सकीं फिर विधानसभा चुनाव में भी पार्टी उनके चेहरे पर चुनाव लड़ी तो दो सीटें मिलीं और ढाई फीसदी से कम वोट मिले।
पार्टी नेताओं की ऐसी बयानबाजी व उठापटक के बीच प्रियंका गांधी अब उ०प्र० आने से बच रही हैं। उनकी समझ में ही नहीं आ रहा है कि वह कैसे उ०प्र० में कांग्रेस के संगठन को खड़ा करें। इसी उधेड़बुन में उन्होंने ललितपुर की घटना को लेकर ट्वीट किया तो उनकी ही पार्टी के नेताओं ने राजस्थान में हुई हिंसा का मसला उठाकर प्रियंका को बैकफ़ुट पर ला दिया। पत्रकारों तथा कांग्रेस के कई नेताओं का कहना है कि राजस्थान में हुई हिंसा को लेकर अगर आप चुप रहते हैं तो फिर आपका किसी अन्य सरकार पर आरोप लगाना ठीक नहीं हैं। बेहतर यह है कि प्रियंका गांधी उ०प्र० में पार्टी का संगठन खड़ा करने और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का चयन करने पर ध्यान लगाएं। इसी से उ०प्र० में पार्टी मजबूत होगी, चुनावी बयान बाजी करने से कुछ हासिल नहीं होगा, विधानसभा चुनावों के परिणाम इसका सबूत है। इसलिए उ०प्र० में रहकर पार्टी संगठन को मजबूत करने का प्रयास करें। तभी उ०प्र० में कांग्रेस का कल्याण हो सकता है।