विधायक तो ‘माननीय’ होते ही हैं. लेकिन जब सरकार अल्पमत में हो तो मान-सम्मान और बढ़ जाता है. सब कुछ विशेष हो जाता है. विशेष बस, विशेष विमान और विशेष होटल….कर्नाटक जैसी सियासी विपदाएं कई रंग दिखाती हैं. ऐसे दिनों में दलों के लिए विधायक ‘अनमोल’ बन जाते हैं. तब उन्हें धरोहर की तरह सहेजना पड़ता है. दलों को दिल बदलने और सेंधमारी की चिंता पल-पल सताती है. जब सियासी महाभारत शुरू होती है तो विधायकों को शहर से दूर ले जाया जाता है. जहां संपर्क न हो. इसे ‘अज्ञातवास’ भी कहते हैं. सियासी उठापटक में अक्सर अज्ञातवास वादियों में होता है. वादियों वाले राज्य में उठापटक हो तो कड़े पहरे में दूसरे राज्य की वादियां दिखाई जाती हैं.
ठाट तो बहुत होते हैं उन दिनों. शाही सम्मान और शाही इंतजाम होते हैं. लेकिन वे बाहरी दुनिया से काट दिए जाते हैं. मोबाइल पर प्रतिबंध होता है. इंटरनेट से दूरी बना दी जाती है और पार्टी के बड़े नेता घेरे रखते हैं. विपश्यना से कुछ कम नहीं होता. जिस होटल में ठहरना होता है उसके बाहर पुलिस निगरानी कर रही होती है कि नेताजी निकलें तो धर लिया जाए. लेकिन बिल चुकाने की चिंता नहीं होती, यात्रा स्पेशल फ्लाइट से होती है. कहीं लोकल में जाना हो तो लग्जरी बस होटल के गेट पर खड़ी मिलती है. अल्पमत वाली सरकार के बहुमत हासिल करने से पहले अपने विधायकों को दूसरे पाले में जाने से बचाने के लिए कुछ ऐसी ही कवायद होती है.
बात 19 मार्च 2016 की है. कांग्रेस के नौ विधायकों की हरीश रावत से बगावत के बाद उत्तराखंड में राजनीतिक संकट पैदा हो गया था. राज्यपाल केके पॉल ने रावत को 28 मार्च तक सदन में बहुमत साबित करने का वक्त दे दिया था. दरअसल, 18 मार्च को बजट पर मत विभाजन की मांग को लेकर भाजपा नेताओं के साथ पूर्व सीएम विजय बहुगुणा, मंत्री हरक सिंह रावत समेत नौ कांग्रेस विधायकों ने सरकार के खिलाफ बगावत कर दी थी. भाजपा ने नौ कांग्रेसियों समेत 35 विधायकों की राज्यपाल के सामने परेड करवा दी. इसके बाद वहां विधायकों को छिपाने और बागी होने से बचाने का खेल शुरू हुआ.
उन दिनों मैं गुरुग्राम में था. गुरुग्राम का उत्तराखंड के सियासी ड्रामे से क्या लेना-देना था? दरअसल, बीजेपी अपने 27 और नौ कांग्रेसी विधायकों को लेकर गुरुग्राम के फाइव स्टार होटल लीला पहुंच गई. भनक मीडिया को लगी तो हम भी पहुंचे. होटल में बड़े भाजपा नेताओं का पहरा लगा दिया गया था. बीजेपी के उत्तराखंड प्रभारी श्याम जाजू और कैलाश विजयवर्गीय दिन भर होटल में डेरा जमाए रहे. पुलिस इतनी थी कि परिंदा पर न मार सके. पत्रकारों ने किसी तरह संदेश भिजवाया. फिर कांग्रेस विधायक बाहर आए और कहा, “हमें प्रलोभन दिए जा रहे हैं.”
हम भी किसी तरह से होटल के अंदर पहुंचे. वहां का नजारा देखा. विधायक लॉबी में बैठते तो भी उन पर निगरानी रखी जा रही थी. एक विधायक की खातिरदारी में चार-चार लोग थे! कोशिश यह कि कोई अकेला न होने पाए. जब गुरुग्राम में उत्तराखंड के विधायकों के ठहरने की चर्चा आम हो गई तो उन्हें जयपुर के एक रिसॉर्ट में शिफ्ट कर दिया गया.
सवाल ये है कि ये विधायक आखिर इतने दूर क्यों लाए गए और इसके लिए हरियाणा और राजस्थान ही क्यों चुना गया? क्योंकि हरियाणा और राजस्थान में बीजेपी की सरकार है. यहां न तो बीजेपी विधायकों के भागने का डर था और न ही बागी कांग्रेसियों को हरीश रावत से. ऐसे समय ऐसी जगह चुनी जाती है जहां कोई दूसरा ‘लालच’ देने पहुंच ही न सके. क्योंकि ऐसे वक्त में प्रलोभनों से निष्ठा बदलने का खतरा हर पल बरकरार रहता है. माननीयों के निष्ठा बदलने का मतलब ये है कि सरकार गई.
फिलहाल, कांग्रेस के नौ बागी विधायक 31 मार्च को देहरादून पहुंचे, तब तक राष्ट्रपति शासन लागू हो चुका था. सरकार गठन की संभावना अभी अदालत की चौखट पर लंबित थी, इसलिए कांग्रेस के सामने अपने और विधायकों के बीच बीजेपी की सेंधमारी का खौफ था कि कहीं उसके बचे विधायकों का दिल भी बदल न जाए. ऐसे में उसने अपने बचे विधायकों को सिरमौर और सोलन (हिमाचल) के रिजॉर्ट्स में भेज दिया. कांग्रेस शासित राज्य का चयन सुरक्षा देखते हुए किया गया. तब हिमाचल में कांग्रेस का शासन था इसलिए सरकार मेजबानी में लग गई. वहां सरकार ने उन पर पुलिस का पहरा बैठा दिया था. जहां विधायक रुके वहां कांग्रेस के बड़े नेताओं के अलावा सबकी एंट्री बंद थी.
विधानसभा अध्यक्ष ने बागी विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी थी. उस पर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भी मुहर लगाई. सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर तत्काल रोक लगाने से इनकार कर दिया था. ऐसे में बागी वोट नहीं डाल पाए और 10 मई 2016 को हरीश रावत ने सदन में बहुमत हासिल कर लिया. उस पर सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगाई इसके बाद केंद्रीय कैबिनेट को उत्तराखंड से राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफारिश करनी पड़ी थी.
कर्नाटक: कोशिश दोनों तरफ से जारी
कोई एक पार्टी विधायकों को ‘बस’ में बैठाकर अपने बस में रखने का प्रयास करती है तो दूसरी पार्टी भी सेंधमारी के लिए जोर लगाती है. कर्नाटक का सियासी नाटक जारी है. सियासी बेबसी में फंसे जेडीएस और कांग्रेस विधायकों को केरल के किसी रिसॉर्ट में ठहराने की कोशिश थी. वे चार्टर फ्लाइट से केरल जाने वाले थे लेकिन सिविल एविएशन विभाग ने इसकी अनुमति नहीं.
येदियुरप्पा ने हटवाई रिसॉर्ट की सिक्योरिटी
हंग अंसेबली बनने के बाद कांग्रेस-जेडीएस एक साथ हो गए. अपने विधायकों को हॉर्स ट्रेडिंग से बचाने के लिए कांग्रेस-जेडीएस ने उन्हें बेंगलुरु के एक रिसॉर्ट में रखा था. जहां हाई सिक्योरिटी थी. लेकिन, गुरुवार को सीएम बनते ही बीएस येदियुरप्पा ने वहां से सिक्योरिटी अफसरों और पुलिसवालों को वापस बुला लिया. जिसके बाद दोनों पार्टियों ने अपने विधायकों को किसी ऐसे राज्य में शिफ्ट करने का फैसला किया जहां बीजेपी की सरकार नहीं है. संकट मोचक माननीयों को पंजाब ले जाया जाता इससे पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने विपक्ष के लिए राहत वाला फैसला सुनाते हुए राज्यपाल का फैसला पलट दिया. शनिवार को ही 4 बजे फ्लोर टेस्ट के आदेश हो गए. वैसे अब एक दिन भी विधायकों को सहेज कर रखना आसान नहीं है.