तालाबों के संरक्षण के लिए जागरुकता जरूरी : चंद्रभूषण पांडेय

लखनऊ। भारत के प्राचीनतम नगर निगमों में एक चेन्नई में 2015 नवम्बर के अंतिम सप्ताह में 1048.3 मिलीमीटर बारिश हुई और पूरा शहर डूब गया और 400 से अधिक लोगों की जान चली गयी। यही नहीं लखनऊ में भी 500 मिलीमीटर बारिश में ही कई मुहल्लों में पानी घरों तक पहुंच जाता है। चार फुट के बारिश में यदि दो मंजिला मंकानों में पानी भर जाय तो फिर इसके लिए शहर के बसावट में ही दोष मानना पड़ेगा। इसका कारण है हमनें मकान तो ऊंचे कर लिए लेकिन जो जीवन के लिए जरूरी है, उसका कोई प्रबंध नहीं किया। ये बातें मिशन “कल के लिए जल” के राष्ट्रीय संयोजक चंद्र भूषण पांडेय ने कही।

पांडेय ने हिन्दुस्थान समाचार से कहा कि पहले तालाबों की पूजा होती थी। अब तालाबों को पाट कर उस पर भवन बनने लगे हैं। शहरी विकास के विस्तार में आज तालाब उड़ गये। चेन्नई के दुर्दशा का कारण भी यही है। कभी चेन्नई भारत के सर्वाधिक तालाबों वाला शहर हुआ करता था, अब वहां तालाब खत्म हो चुके हैं। देश की औसत वर्षा 87 सेमी है अर्थात कमर भर पानी और इतने में शहर डूब जाते हैं। इसका कारण है, लोग अपनी जिम्मेदारी भूल गये। हर सार्वजनिक काम को सरकार पर छोड़ दिया। जब पानी को कही जमीन में जाने का जगह ही नहीं रहेगा तो फिर शहर तो डूबना ही है।

उन्होंने कहा कि हमें पुरानी संस्कृति की ओर लौटना होगा। तालाबों की पूजा, तालाबों के संरक्षण के लिए स्वयं ही जागरूक होना होगा। यह काम सरकार का नहीं, आमजन का है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि पहले गांवों में सुबह उठते ही लोग अपने दरवाजे के आगे झाड़ू लेकर सफाई करते थे। पूरी गलियां साफ रहती थीं। आज हमने सरकार पर छोड़ दिया। अपने घर का कूड़ा गली में डालने लगे, नतीजा यह है कि सफाई कर्मियों के होने के बावजूद हर गली में कूड़ा दिख जाएगा।

पांडेय ने कहा कि जल संरक्षण के लिए तालाब बहुत जरूरी हैं। यदि तालाबों का अस्तित्व नहीं रहेगा तो प्रकृति का प्रकोप झेलना निश्चित है। इसके लिए हम सभी को जागरूक होना पड़ेगा। गांवों के तालाबों को पुनर्जीवित करना होगा, वरना हमारा अस्तित्व ही संकट में पड़ जाएगा।

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