मंत्रिपरिषद के समक्ष कृषि उत्पादन सेक्टर के सात विभागों की भावी कार्ययोजना के प्रस्तुतिकरण पर मुख्यमंत्री के दिशा-निर्देश

लखनऊ। प्रत्येक विभाग को रोजगार सृजन के अवसरों पर फोकस रखना चाहिए। जो योजना प्रारम्भ करें उसे समयबद्ध रूप से संचालित किया जाए।

● 100 दिनों के बाद जनता के सामने हर विभाग को अपने कार्यों का विवरण प्रस्तुत करना होगा।

● जनहित की योजनाओं के लिए धनराशि की कमी नहीं, लेकिन वित्तीय संतुलन जरूरी। मितव्ययिता पर ध्यान दें।

● बाढ़ बचाव से सम्बंधित कार्य 15 जून से पहले पूर्ण कर लिया जाए। पुराने तटबंधों की मरम्मत समय से कर ली जाए।

● आदरणीय प्रधानमंत्री जी के मार्गदर्शन में राज्य सरकार कृषकों की आय में गुणात्मक वृद्धि करने के लिए संकल्पित है। आगामी 05 वर्ष के भीतर प्रदेश में ऐसा परिवेश तैयार किया जाए जहां पर्यावरण संवेदनशील कृषि व्यवस्था हो। खाद्यान्न एवं पोषण की सुरक्षा हो।

● आधुनिक कृषि तकनीक एवं पारंपरिक कृषि विज्ञान का अपेक्षित उपयोग किया जाना चाहिए। कृषि शिक्षा और कृषि अनुसंधान को कृषकोन्मुखी और जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।

● प्रदेश की बढ़ती आबादी के लिए खाद्य तेलों की जरूरत के सापेक्ष अभी केवल 30-35 फीसदी उत्पादन हो रहा है। जबकि दलहन का उत्पादन 40-45 फीसदी है। इसे मांग के अनुरूप उत्पादन तक लाने के लिए ठोस कार्ययोजना बनाई जाए।

● तिलहन और दलहन उत्पादन को बढ़ाना ही होगा। लघु एवं सीमांत किसानों की भूमिका इसमें अहम होगी।

● हर कृषि विज्ञान केंद्र को सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के रूप में विकसित करने के प्रयास हों। केवीके में इंफ्रास्ट्रक्चर पर्याप्त हैं। हर सेंटर में एक प्रोसेसिंग यूनिट जरूर हो। इससे किसानों को लाभ होगा।

●नहरों के टेल तक पानी पहुंच सके, इसके लिए ठोस प्रयास हों।

● फसल बीमा योजना के सर्वेक्षण को और सरल किया जाए। किसानों को इस संबंध में जागरूक किया जाए।

● गंगा नदी के किनारे 35 जनपदों में प्राकृतिक खेती की परियोजना को प्रोत्साहित किया जाए।

● विकास खंड स्तर पर 500-1000 हेक्टेयर क्षेत्रफल के क्लस्टर का गठन। हर क्लस्टर में एक चैंपियन फार्मर, एक सीनियर लोकल रिसोर्स पर्सन, 02 लोकल रिसोर्स पर्सन 10 कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन का चयन किया जाए।

● पीएम किसान योजना में नाम मिस मैच होने की समस्या आ रही हैं। ऐसे में अभियान चला कर डेटा सुधार किया जाए। अपात्रों से वसूली भी की जाए। 31 मई तक कृषकों की ई-केवाईसी पूर्ण कर ली जाए।

● हर जिले में निर्यात की जा सकने वाकई उपज का चिन्हीकरण करें। यह योजना ओडीओपी की तर्ज पर लागू की जा सकती है।

● एक्सप्रेसवे पर जमीन चिन्हित कर नई मंडियों की स्थापना की कार्यवाही की जाए। पीपीपी मॉडल पर मंडियों में प्रसंस्करण इकाइयों को स्थापित करने की नीति तैयार करें।

● यह सुखद है कि विगत 05 वर्ष में 1,69,153 करोड़ का गन्ना मूल्य भुगतान कर नवीन कीर्तिमान बनाया गया है। अगले 100 दिनों के भीतर ₹8,000 करोड़ गन्ना मूल्य भुगतान के लक्ष्य के साथ प्रयास किए जाएं। 06 माह में यह लक्ष्य 12,000 करोड़ होना चाहिए।

● किसानों को गन्ना मूल्य भुगतान 14 दिनों के भीतर करने के लिए हम संकल्पबद्ध हैं। इसके लिए सभी जरूरी प्रयास किये जाएं।

● बिलासपुर रामपुर, सेमीखेड़ा बरेली और पूरनपुर पीलीभीत की सहकारी चीनी मिल का आधुनिकीकरण किया जाना आवश्यक है। इस दिशा में कार्य किया जाए। नानौता, साथा और सुल्तानपुर चीनी मिल का सुदृढ़ीकरण किया जाना चाहिए।

● पेराई सत्र 2022-23 के लिए गन्ना सर्वेक्षण नीति जारी कर दी जाए। डिजिटल सर्वेक्षण हो।

● अगले 05 वर्ष में गन्ने की उत्पादकता वर्तमान के 81.5 हेक्टेयर से बढ़ाकर 84 टन प्रति हेक्टेयर करने के लक्ष्य के साथ कार्यवाही की जाए।

● उत्तर प्रदेश खाद्य प्रसंस्करण उद्योग नीति -2017 के अंतर्गत स्वीकृत इकाइयों को अनुदान अंतरण अगले 100 दिन में कर दिया जाए।

● कौशाम्बी,चन्दौली में इजरायल तकनीक पराधारित सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फ़ॉर फ्रूट एंड वेजिटेबल की स्थापना का काम शुरू किया जाए।

● पशु स्वास्थ्य, कल्याण, स्थिर पशुपालन को बढ़ावा देना हमारा संकल्प है। अन्य पशुजन्य उत्पाद को प्राप्त करने के लिए उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि की जानी चाहिए। यह रोजगार सृजन और किसानों की आय वृद्धि में भी सहायक है।

● गोवंश संरक्षण के साथ केंद्र को स्वावलंबी बनाने के लिए अगले 100 दिनों में गो-अभ्यारण्य की स्थापना की जाए।

● अगले 100 दिन में 50,000 निराश्रित गोवंश को पंचायती राज एवं नगर विकास से समन्वय कर दिलाया जाए। छह माह के भीतर 1,00,000 निराश्रित गोवंश के लिए व्यवस्थित आश्रय स्थल तैयार कराए जाएं।

● रेशम विभाग द्वारा कीटपालन गृह, उपकरण और अन्य सहायता उपलब्ध कराते हुए किसानों की आय में बढ़ोतरी के प्रयास हों।

● काशी में सिल्क एक्सचेंज मार्केटिंग बोर्ड का तकनीकी एवं विक्रय केंद्र खोला जाए। सिल्क एक्सचेंज से अधिकाधिक बुनकरों को जोड़ा जाए।

● 05 वर्ष में रेशम धागे के उत्पादन को वर्तमान के 350 मीट्रिक टन से बढाकर तीन गुना तक करने के प्रयास हों।

● बुनकरों, धागाकरण इकाइयों और सिल्क एक्सचेंज को डिजिटाइज कर एक प्लेटफार्म से जोड़ा जाए।

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