नई दिल्ली (शाश्वत तिवारी)। हमारी धरती आए दिन प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रही है। भारत में हर साल प्राकृतिक आपदाओं से भयंकर नुकसान होता है। इसी को ध्यान में रखते हुए भारत ने 2019 में 27 देशों के साथ मिलकर एक संगठन तैयार किया। इस संगठन को ‘कोलिशन ऑफ डिजास्टर रेजिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर’ नाम दिया गया है। इस संगठन के जरिए भारत अगले माह ग्लासगो में होने वाले जलवायु सम्मेलन में छोटे द्वीपों वाले देशों की मदद के लिए एक कार्यक्रम भी शुरु करेगा। यह सम्मेलन 31 अक्टूबर से 12 नवंबर तक चलेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2019 में न्यूयॉर्क में हुए संयुक्त राष्ट्र क्लाइमेट एक्शन समिट में CDRI की शुरुआत की थी। “इंफ्रास्ट्रक्चर फॉर रेजिलिएंट आइलैंड स्टेट्स” शीर्षक वाला कार्यक्रम 2022 से 2030 के बीच तीन भौगोलिक क्षेत्रों में स्थित 58 देशों में लागू किया जाएगा, जिसमें कैरिबियन, प्रशांत, अटलांटिक, हिंद महासागर, भूमध्यसागरीय और दक्षिण चीन सागर शामिल हैं।
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, छोटे द्वीप वाले विकासशील देशों को प्राकृतिक आपदाओं से भारी नुकसान पहुंचता है। ये नुकसान इन देशों के सकल घरेलू उत्पाद का 1 से 10% तक हो जाता है। दुनिया के दो तिहाई से ज्यादा देश प्राकृतिक नुकसान को झेलते हैं।
अब इस तरह की आपदाओं से निपटने के लिए भारत, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, जापान और अमेरिका आगे आए हैं। भारत, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन CDRI के लिए 10 लाख डॉलर का दान देंगे जबकि अमेरिका और जापान आपदा से बचाव के लिए टेक्निकल सपोर्ट का योगदान देंगे।
CDRI मुख्य रूप से इन देशों में तकनीकी सहायता और क्षमता विकास की सुविधा प्रदान करेगा। विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया और ऐसे वैश्विक मामलों में भारत का नेतृत्व करने के महत्व को समझाय भी, उन्होंने कहा कि जलवायु वार्ता के संदर्भ में, यह भारत की ओर से एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि हम एक विकासशील देश हैं और फिर भी हम हैं छोटे द्वीपीय देशों में बुनियादी ढांचे के विकास पर सहयोग करना चाहते हैं। यह अनुकरणीय है कि हम आगे बढ़ रहे हैं और वैश्विक भूमिका निभा रहे हैं।