नई दिल्ली(शाश्वत तिवारी)। भारतीय प्रतिनिधियों ने 1945 में ब्रिटिश शासन से पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करने से पहले ही संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर किए थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मासिक ‘मन की बात’ संबोधन में राष्ट्र को संबोधित करते हुए, रविवार, 24 अक्टूबर को, संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की स्थापना की 76वीं वर्षगांठ को याद किया। उन्होंने बीते वर्षों में संयुक्त राष्ट्र में भारत के योगदान पर विस्तार से चर्चा की और याद किया।
प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र में भारत के योगदान को लेकर एक अल्पज्ञात कहानी की चर्चा करते हुए, 1947-48 में मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा का मसौदा तैयार करने में श्रीमती हंसा मेहता द्वारा निभाई गई भूमिका को याद किया। इस घटना का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा 1947-48 में, जब संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा तैयार की जा रही थी, तो शुरुआत में इस घोषणा में लिखा गया था कि ‘सभी पुरुषों को समान बनाया गया है। लेकिन भारत के एक प्रतिनिधि, हंसा मेहता ने इस पर आपत्ति जताई और फिर घोषणा में इसे बदलकर ‘सभी इंसानों को समान बनाया गया’ कर दिया गया। यह लैंगिक समानता की भारत की प्राचीन परंपरा के अनुरूप था।
प्रधानमंत्री ने लक्ष्मी मेनन जैसी अन्य महिला प्रतिनिधियों द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका का भी उल्लेख किया, जिन्होंने “लैंगिक समानता के मुद्दे पर जोरदार ढंग से बात की। उन्होंने 1953 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली महिला अध्यक्ष बनीं राजनयिक और राजनीतिज्ञ विजया लक्ष्मी पंडित की भी चर्चा की।
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के 76वें वर्ष की चर्चा करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि भारत ने हमेशा विश्व शांति की दिशा में काम किया है और जलवायु परिवर्तन, गरीबी उन्मूलन जैसे मुद्दों को लेकर अपनी प्रमुख भूमिका भी निभा रहा है। उन्होंने कहा कि हमें एक राष्ट्र के रूप में 1950 के दशक से संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन का हिस्सा होने पर “गर्व” है।
भारत के विदेश मंत्री डॉo एसo जयशंकर ने भी संयुक्त राष्ट्र की 76वीं वर्षगांठ को इंगित करते हुए कहा कि भारत आने वाले वर्षों में एक संयुक्त राष्ट्र में नए बदलावों को देखने को लेकर प्रतिबद्ध है। डॉo जयशंकर ने अपने एक ट्वीट में सुधारित बहुपक्षवाद के महत्व को दोहराया जो पुनर्संतुलन, निष्पक्षता और बहुध्रुवीयता को दर्शाता है। उन्होंने आगे कहा कि भारत संयुक्त राष्ट्र की ‘प्रभावकारिता और विश्वसनीयता को बढ़ाने में हमेशा रचनात्मक भूमिका निभाएगा। जर्मनी, जापान और ब्राजील जैसे अन्य देशों के साथ भारत ने लंबे समय से वैश्विक शक्तियों की वर्तमान वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने के लिए 75 साल पहले स्थापित संयुक्त राष्ट्र शासन प्रणाली में सुधार का आह्वान किया है।