लोकसभा में विशेषाधिकार हनन को लेकर अब बयानबाजी तेज हो गई है। दरअसल, यह सारा मामला राहुल गांधी के उस बयान के बाद से उठा है जिसमें उन्होंने रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और पीएम मोदी के खिलाफ झूठ बोलने और तथ्यों को छिपाने का आरोप लगाया था। इसके बाद से ही सांसदों के विशेषाधिकार और इसके हनन का मामला तूल पकड़ गया है। राहुल गांधी के इस विवादास्पद बयान के बाद भाजपा ने उनके खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया है। वहीं अब इसके जवाब में कांग्रेस की तरफ से भी रक्षा मंत्री और पीएम मोदी के खिलाफ इसी तरह का प्रस्ताव लाने पर विचार किया जा रहा है।
क्या है पूरा मामला
बहरहाल, आगे बढ़ने से पहले आपको ये भी बता दें कि राहुल का विवादास्पद बयान फ्रांस और भारत के बीच हुई राफेल डील को लेकर दिया गया था। उनका आरोप था कि एनडीए सरकार ने यह डील यूपीए द्वारा तय की गई कीमत से अधिक में की है। इतना ही नहीं उन्होंने सदन में यह भी कहा कि इस संबंध में पहले रक्षा मंत्री ने तथ्यों को सभी के समक्ष रखने की बात कही थी, लेकिन बाद में वह इससे मुकर गईं। यहां पर ये भी बताना जरूरी होगा कि सदन में किसी के खिलाफ आरोप लगाने से पहले इसकी इजाजत लेना जरूरी होता है, जो कि राहुल ने नहीं ली थी। इसके ही चलते भाजपा ने उनके खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया है। अब इसको लेकर गेंद लोकसभा अध्यक्ष के पाले में है।
ये है तरीका
दरअसल, किसी भी विशेषाधिकार हनन के प्रस्ताव को लेकर अध्यक्ष ही अंतिम फैसला करता है। संसद ठीक तरीके से काम कर सके और उसकी गरिमा भी बनी रहे, इसके लिए संसद के प्रत्येक सदस्यों को एक विशिष्ट अधिकार प्राप्त होता है। जिसे विशेषाधिकार (प्रिविलेज) कहा जाता है। इसके हनन पर जेल भेजने से लेकर निलंबित करने तक की कार्रवाई हो सकती है। संसद विशेषाधिकार के तहत मिलने वाले इन अधिकारों के हनन को रोकने के लिए सदैव तत्पर रहती है। इसके लिए संसद के दोनों सदनों में एक विशेषाधिकार कमेटी काम करती है। जिसका गठन सदन के अध्यक्ष या सभापति की ओर से किया जाता है।
विशेषाधिकार समिति
लोकसभा की इस विशेषाधिकार समिति में कुल 15 सदस्य होते है। इनमें सभी पार्टियों के संसद सदस्यों का प्रतिनिधित्व होता है। किस पार्टी के कितने सासंद इनमें होंगे, इसका निर्धारण सदन में पार्टियों की संख्या के हिसाब से किया जाता है। यह कमेटी लोकसभा अध्यक्ष की देखरेख में काम करती है। जो लोकसभा के भीतर और बाहर अपने सदस्यों के विशेषाधिकार से जुड़े सभी मामलों को देखती है।
लोकसभा अध्यक्ष का होता है अंतिम फैसला
ऐसे मामलों में सदन खुद या किसी सदस्य की ओर से नोटिस मिलने के बाद ही कार्रवाई करता है। इसके तहत यह सुनिश्चित करना होता है कि इससे सदन या फिर किसी सदस्य की गरिमा को ठेस पहुंची है। फिलहाल लोकसभा के मामले में ऐसी किसी नोटिस पर अंतिम फैसला लोकसभा अध्यक्ष को लेना होता है। जो नोटिस के तर्कों से सहमत होने पर इस पूरे मामलें को जांच के लिए विशेषाधिकार समिति को भेजता है। जहां इससे जुड़े प्रत्येक पहलुओं की गहराई से जांच होती है।
सजा के तौर पर ये हैं प्रावधान
साथ ही जरूरी होने पर संबंधित को नोटिस जारी कर जबाव मांगा जाता है। सदस्य या किसी बाहरी के खिलाफ विशेषाधिकार से जुड़े मामले में एक ही प्रक्रिया अपनाई जाती है। इस दौरान समिति जबाव को मिलने के बाद कार्रवाई की सिफारिश करती है। जिसमें भत्र्सना करने से लेकर दंड देने या फिर जेल भेजने तक की कार्रवाई हो सकती है। हालांकि अपने सदस्यों के मामले में वह सिर्फ दो प्रकार के ही दंड दे सकता है। इसके तहत उसे सदन से निलंबित या फिर निष्कासित किया जा सकता है, वहीं मंत्रिमंडल के सदस्यों के मामले में निष्कासित करने जैसी सिफारिश नहीं की जा सकती है।
समिति की सिफारिश पर निर्णय लेने का एकाधिकार सुरक्षित
समिति अपनी यह सिफारिश लोकसभा अध्यक्ष को भेजती है, जिसके पास इन पर निर्णय लेने का अंतिम अधिकार होता है। वह इन सिफारिशों के अमल का आदेश दे सकती है, या फिर उसे रद्द भी कर सकती है। संसद के विशेषाधिकार के तहत किसी के खिलाफ कार्रवाई सिर्फ उसी सदन में की हो सकती है, जिस सदन का वह सदस्य हो या फिर जहां का मामला हो। ऐसे मामलों में दंड को लेकर संसद को ढेर सारी स्वतंत्रता दी गई है। वह किसी मामले में खेद जताने पर ही उसे माफ कर सकती है। फिलहाल संसद का का इसके पीछे अपनी गरिमा के साथ संसद और उसके सदस्यों, समितियों की स्वतंत्रता को कायम रखना होता है।