राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंगलवार को गुजरात के सबसे विवादित आतंकवाद और संगठित अपराध निरोधी विधेयक (जीसीटीओसी) को मंजूरी दे दी. इसके तहत पुलिस को किसी का फोन टैप करके उसे अदालत में बतौर सबूत पेश करने सहित कई नई शक्तियां दी गई हैं.
ये बिल गुजरात विधानसभा में तब लाया गया था जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. गुजरात में आतंकवाद और आर्थिक अपराधियों को हटाने के लिए 2004 में विधानसभा में बिल पास किया गया था. इसके बाद 2009 और 2015 में विधानसभा में संशोधन के साथ बिल पास करने के बाद उस वक्त केंद्र की यूपीए सरकार से मंजूरी नहीं मिली थी. लेकिन अब मोदी सरकार ने इस बिल को मंजूरी दे दी है.
गुजरात विधानसभा में बिल 16 साल में 3 बार पास हुआ था और मंजूरी के लिए केंद्र के पास भेजा गया था. लेकिन केंद्र सकार द्वारा मंजूरी नहीं मिलने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन गृह राज्यमंत्री अमित शाह ने यूपीए सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला था.
2004 में अटल बिहारी वाजपेयी ने कानून में संशोधन करने की सलाह दी थी. 2009 में भी केंद्र सरकार द्वारा गुजरात सरकार के आतंकवाद विरोधी कानून के तीन मुद्दो पर आपत्ति जताते हुए उसे वापस किया था और कहा था कि जब तक राज्य सरकार केंद्र सरकार के मुताबिक बिल मे संशोधन नहीं करती तब तक इस बिल को राष्ट्रपति के पास नहीं भेजा जाएगा.
2009 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने इस बिल को राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजने से इनकार कर दिया था. इस दौरान राज्य सरकार ने गृह में नया संशोधित बिल गुजरात आतंकवाद और संगठित अपराध नियंत्रण बिल 2015 में पास करा दिया, जिसमें कुछ संशोधन किए गए. विरोधियों का कहना है कि संशोधित बिल में पुलिस के पास ज्यादा ताकत रहेगी और इसका गलत इस्तेमाल हो सकता है.