ब्रह्मांड में जब किसी तारे की अवधि पूरी हो जाती है तो उसमें भयानक विस्फोट होता है। इससे निकलने वाला प्रकाश और विकिरण इतना जोरदार होता है कि पूरी आकाशगंगा धुंधली हो जाती है। विस्फोट के बाद तारा सफेद ड्वार्फ में बदल जाता है। इस घटना को सुपरनोवा या महानोवा कहा जाता है। वैज्ञानिकों ने अब इसके पीछे के रासायनिक कारणों का पता लगाने का दावा किया है। एक नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इस पूरी प्रक्रिया को समझाया है।
रहस्यमय सुपरसोनिक तंरगों के रिएक्शन
साइंस नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि तारों के विस्फोट की यह प्रक्रिया रहस्यमय सुपरसोनिक तंरगों के रिएक्शन (प्रतिक्रिया) के कारण जन्म लेती है। इसे डेटोनेशन कहा जाता है। यह अध्ययन अमेरिका की कनेक्टिकट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों ने मिलकर किया है। शोधकर्ताओं ने कहा ‘ये रहस्यमय तरंगें ध्वनि की गति के मुकाबले कई गुना तेजी से चलती हैं और तारे में विस्फोट होने से पहले ही उसकी सारी सामग्रियों को नष्ट कर देती हैं।’
ऐसे किया अध्ययन
इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने अमेरिका के सबसे बड़े सुपर कंप्यूटरों पर किए गए प्रयोगों और संख्यात्मक सिमुलेशन का उपयोग करते हुए सुपरनोवा की घटना को प्रदर्शित किया। अध्ययन के बाद शोधकर्ताओं ने पाया कि इस तरीके का विस्फोट तभी होता है जब कार्बन और ऑक्सीजन के परमाणुओं को एक तारे के कोर में लगभग 1,000 टन प्रति घन सेंटीमीटर में पैक किया जाता है और उसे परमाणु प्रतिक्रियाओं में उच्च तापमान पर जलने के लिए छोड़ दिया जाता है।’
भारी मात्रा में होता है ऊर्जा का उत्सर्जन
शोधकर्ताओं के अनुसार, इसका परिणाम यह होता है कि विस्फोट के बाद तारे से एक सेकंड में इतनी ऊर्जा का उत्सर्जन होता है, जितनी ऊर्जा तारा अपने पूरे जीवनकाल में उत्सर्जित करता है। विस्फोट के बाद कई प्रकार की गैसें और तारे से निकले टुकड़े अंतरिक्ष में फैल जाते हैं। कई बार ये टुकड़े दूसरे तारों के गुरुत्वाकर्षण के संपर्क में आने पर उनकी कक्षा के चक्कर भी लगाना शुरू कर देते हैं। शोधकर्ताओं ने कहा, इससे निकलने वाला विकिरण बहुत खतरनाक होता है। इसकी राह में आने वाले तारे और अन्य खगोलीय पिंड भी इससे प्रभावित होते हैं।