न्यायमूर्ति कलीफुल्ला, श्रीश्री रविशंकर और वकील श्रीराम पांचू करेंगे मध्यस्थता

श्रीराम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सौंपी पैनल को जिम्मेदारी

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सालों से लंबित पड़े श्रीराम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को मध्यस्थता से सुलझाने का आदेश देते हुए तीन सदस्यीय पैनल को इसकी जिम्मेदारी सौंपी है। पैनल की अध्यक्षता का जिम्मा सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएम कलीफुल्ला को सौंपा है। पैनल के अन्य दो सदस्य श्रीश्री रविशंकर और वकील श्रीराम पांचू होंगे। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मध्यस्थता के लिए कोई कानूनी अड़चन नहीं है। मध्यस्थता की प्रक्रिया गुप्त रहेगी। कोर्ट ने मध्यस्थता की प्रक्रिया को 8 हफ्ते में पूरा करने का आदेश दिया है। जबकि मध्यस्थता की स्टेटस रिपोर्ट 4 हफ़्ते में दाखिल करने के निर्देश हैं। इस संबंध में पिछले 6 मार्च को कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था।

सुनवाई के दौरान हिंदू पक्ष की ओर से मध्यस्थता का विरोध किया गया था। हिंदू पक्ष की ओर से कहा गया कि था हिंदू इस मामले को भावनात्मक और धार्मिक आधार पर देखते हैं। जबकि मुस्लिम पक्ष ने मध्यस्थता का समर्थन किया था। निर्मोही अखाड़े ने मध्यस्थ के लिए जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस एके पटनायक और जस्टिस जीएस सिंघवी के नाम का प्रस्ताव रखा था। वहीं स्वामी चक्रपाणि के नेतृत्व वाले हिंदू महासभा ने जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस एके पटनायक का मध्यस्थ के रूप में नाम सुझाया था। हिंदू पक्ष के वकील ने बाबर द्वारा मंदिर को गिराने का जिक्र किया था। इस पर जस्टिस एसए बोब्डे ने कहा कि इतिहास हमने भी पढ़ा है। इतिहास पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है। हम जो भी कर सकते हैं वो वर्तमान के बारे में कर सकते हैं। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सुझाव दिया था कि मध्यस्थता की कार्यवाही की मीडिया रिपोर्टिंग नहीं की जाए। तब मुस्लिम पक्ष की ओर से वकील राजीव धवन ने कहा था कि अगर मध्यस्थता की मीडिया रिपोर्टिंग की जाए तो उस पर अवमानना का मामला चलाया जाए।

विभिन्न पक्षों की प्रतिक्रिया

अयोध्या में रामजन्म भूमि मंदिर निर्माण के लिए सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर करने वाले डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने तीन सदस्यीय समिति के गठन का स्वागत करते हुए कहा कि समिति को सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों की रोशनी में ही काम करना चाहिए। इस संबंध में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में 1994 और सितंबर 2018 के फैसलों का उल्लेख किया है। स्वामी के अनुसार न्यायालय के फैसलों से चार बिंदु उभरते हैं। पहला, मस्जिद इस्लाम मजहब का मूलभूत हिस्सा नहीं है। सरकार मस्जिद को हटा सकती है या गिरा सकती है। दूसरा, मंदिर में पूजा करना हिन्दुओं का संविधान प्रदत्त अधिकार है। जिस स्थान को हिन्दू समुदाय भगवान श्रीराम का जन्मस्थान मानता है वहां पूजा करने का उसे मौलिक अधिकार है। ऐसा मंदिर हटाया नहीं जा सकता। तीसरा, किसी संपत्ति पर मालिकाना हक का दावा सामान्य अधिकार है। चौथा, केंद्र सरकार ने .313 (दशमलव तीन एक तीन) एकड़ के गर्भगृह वाले भूमि खंड सहित 67.07 एकड़ क्षेत्र का अधिग्रहण किया था। सुप्रीम कोर्ट इस पर सवाल उठा नहीं सकता।

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