जब ऋषि मार्कण्डेय ने उर्वशी का मान भंग किया

उर्वशी के विषय में हम सभी जानते है। वो देवराज इंद्र की सबसे  सुन्दर अप्सरा और अन्य अप्सराओं की प्रमुख थी। पृथ्वी महान ऋषिओं-मुनिओं से भरी हुई थी और जब भी कोई मनुष्य घोर तपस्या करता था, देवराज इंद्र अपनी कोई अप्सरा उसकी तपस्या भंग करने के लिए भेज देते थे। कदाचित अपने सिंहासन के लिए वे कुछ अधिक ही चिंतित रहते थे। उनकी ही एक अप्सरा मेनका ने राजर्षि विश्वामित्र की तपस्या भंग कर दी थी। स्वयं उर्वशी ने पुरुओं के पूर्वज पुरुरवा की तपस्या भंग की और उनके साथ विवाह भी किया जिससे उन्हें आयु नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। इसी उर्वशी ने ऋष्यश्रृंग के पिता ऋषि विभाण्डक की तपस्या तब भंग की जब अन्य अप्सराएं हार मान बैठी। एक तरह से कहा जाये तो उर्वशी देवराज इंद्र का अचूक अस्त्र थी। किन्तु उर्वशी को भी एक बार मुँह की खानी पड़ी।

मार्कण्डेय ऋषि महादेव के अनन्य भक्त थे। उनकी आयु कम थी जिस कारण उन्होंने भोलेनाथ की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया और महारुद्र के क्रोध के कारण मार्कण्डेय के प्राण लेने आये स्वयं यमराज भी मृत्यु के मुख में जाते जाते बचे। उसके बाद उन्हें महादेव से दीर्घायु होने का आशीर्वाद मिला। एक बार वे घोर तपस्या कर रहे थे। उनकी इस उग्र तपस्या से देवराज इंद्र स्वभावतः चिंतित हो उठे। उन्होंने सोचा मार्कण्डेय ऋषि उनके इन्द्रपद के लिए ही तप कर रहे हैं। उन्हें तपस्या से डिगाने के लिए देवराज ने कई अप्सराओं को भेजा किन्तु वे उनका तप भंग ना कर सकीं। अंत में कोई और उपाय ना देख कर इंद्र ने अप्सराओं में श्रेष्ठ उर्वशी को मार्कण्डेय ऋषि के पास भेजा ताकि वो उनकी तपस्या भंग कर सके। 
उर्वशी अपने पूरे श्रृंगार और मान के साथ मार्कण्डेय ऋषि के समक्ष आयी। कई दिनों तक उसने भांति-भांति के नृत्य कर उन्हें जगाने का प्रयास किया किन्तु सफल ना हो सकी। अब तो उर्वशी का भी मान भंग हुआ और फिर उसने कोमल स्पर्श द्वारा मार्कण्डेय ऋषि को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास किया। इसपर मार्कण्डेय ऋषि ने उर्वशी को देखा किन्तु कोई प्रतिक्रिया ना देकर अपनी तपस्या जारी रखी। अंत में कोई और उपाय ना देख कर उर्वशी निर्वस्त्र हो गयी किन्तु देवताओं के लिए भी दुर्लभ उसका ये रूप देख कर मार्कण्डेय ऋषि के मन में कोई काम भावना ना जगी। किन्तु इस प्रकार एक स्त्री का मान जाते हुए वे ना देख सके और उन्होंने आदर पूर्वक उर्वशी से कहा – “हे देवी! आप कौन हैं और यहाँ किस प्रयोजन से आयी हैं?” 
एक तपस्वी का ऐसा दृढ संकल्प देख कर उर्वशी लज्जा से गड गयी और वस्त्रादि से पुनः सुशोभित होकर उसने हाथ जोड़ कर उनसे कहा – “हे महर्षि! समस्त देवता और उनके स्वामी इंद्र भी जिसके सानिध्य को सदैव लालायित रहते हैं, मैं वो उर्वशी हूँ। देवराज की आज्ञा से मैं आपका तप भंग करने आयी थी किन्तु आपने मेरे सौंदर्य का अभिमान चूर-चूर कर दिया। किन्तु हे महाभाग! अगर मैं बिना आपकी तपस्या भंग किये वापस स्वर्गलोक गयी तो मेरा बड़ा अपमान होगा। स्वर्ग में जो स्थान इंद्रप्रिया शची का है वही मेरा भी है। अतः अब आप ही मेरे मान की रक्षा कीजिये।”
तब मार्कण्डेय ऋषि ने कहा – “देवी! इस संसार में कुछ भी अनश्वर नहीं है। जब इंद्र की मृत्यु हो जाएगी तब तुम क्या करोगी?” इसपर उर्वशी ने कहा – “हे महर्षि! मेरी आयु इंद्र से कहीं अधिक है। जब तक १४ इंद्र मेरे समक्ष इन्द्रपद का भोग नहीं कर लेंगे, तब तक मैं जीवित रहूँगी। मेरी आयु परमपिता ब्रह्मा के एक दिन, अर्थात एक कल्प के बराबर है।” तब मार्कण्डेय मुनि ने कहा – “किन्तु उसके पश्चात? जब परमपिता का एक दिन व्यतीत होने पर महारुद्र महाप्रलय करेंगे तब तुम्हारे इस रूप का क्या होगा।” इस प्रश्न का उर्वशी के पास कोई उत्तर नहीं था इसीलिए वो उसी प्रकार सर झुकाये खड़ी रही। तब मार्कण्डेय ऋषि ने देवराज इंद्र का स्मरण किया। 
उनके स्मरण करते ही देवराज वहाँ आये और उनकी प्रशंसा करते हुए कहा – “मुनिवर! आप धन्य हैं कि उर्वशी के अतुलनीय सौंदर्य के सामने भी आपका तेज अखंड ही रहा। आप ही वास्तव में स्वर्गलोक के वास्तविक अधिकारी हैं इसीलिए चलिए और स्वर्गलोक का शासन सम्भालिये।” तब मार्कण्डेय ऋषि ने हँसते हुए कहा – “हे देवराज! मैं स्वर्ग के सिंहासन का क्या करूँगा? क्या आपको ये ज्ञात नहीं कि १४ भुवनों के स्वामी महादेव ने स्वयं मुझे अपनी कृपा प्रदान की है? उनकी कृपा के आगे आपके सिंहासन का क्या मोल? इसीलिए मेरी और से निश्चिंत रहें और धर्मपूर्वक स्वर्ग पर शासन करते रहें।” मार्कण्डेय द्वारा इस प्रकार कहने पर देवराज निश्चिंत हुए और फिर उन्होंने उर्वशी के साथ स्वर्गलोक को प्रस्थान किया। 

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com