दिल्ली की सांस प्रदूषण के कारण हांफ रही है। दमघोंटू हवा में यहां के लोगों को एक-एक सांस भारी पड़ रही है। ऐसे में हाल ही में एक उम्मीद कृत्रिम बारिश से जगी थी। कहा जा रहा था कि कृत्रिम बारिश करवाकर प्रदूषण के स्तर को निचले स्तर पर लाया जाएगा। लेकिन इस योजना को चंद्रयान-2 की नजर लग गई है।
लगी चंद्रयान-2 की नजर
दिल्ली में कृत्रिम बारिश कराने की योजना पर चंद्रयान-2 की नजर लग गई है। यह हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि भारत की इस महत्वकांक्षी मुहिम के चलते अब दिल्ली में कृत्रिम बारिश नहीं होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि जिस विशेष विमान से कृत्रिम बारिश कराई जानी थी, वह चंद्रयान-2 के अभियान में जुटा है।
आईआईटी कानपुर और इसरो ने बनाई थी योजना
प्रदूषण के बढ़े स्तर से दिल्ली को बचाने का यह प्रयोग पर्यावरण मंत्रालय ने आईआईटी कानपुर और इसरो के साथ मिलकर पिछले महीने तैयार किया था। इसके लिए मंत्रालय ने सभी संबंधित विभागों से अनुमति भी ले ली थी, लेकिन उस समय बादलों के दिल्ली के ऊपर न आने से पूरी योजना लटक गईं थी। हालांकि यह कहा गया था कि जैसे बादल आएंगे कृत्रिम बारिश कराई जाएगी।
दोहरी मार झेल रही दिल्ली
दिल्ली एक तरफ ठंड से कांप रही है, तो दूसरी तरफ प्रदूषण के बढ़े हुए स्तर ने लोगों का जीना और भी मुहाल किया हुआ है। खासकर बुजुर्गों और बच्चों को प्रदूषण के बढ़े स्तर से काफी परेशानी हो रही है। ऐसे में जब यह खबर आती है कि अब कृत्रिम बारिश नहीं होगी तो यह खबर निराश करने के साथ ही सांस भी फुला देती है। फिलहाल तो यही कहा जा सकता है कि चंद्रयान-2 अभियान के चलते राजधानी में कृत्रिम बारिश कराने का प्रयोग टल गया है। यह विशेष विमान अगले कुछ महीनों तक इसी काम में व्यस्त रहेगा।
अगले कुछ महीनें नहीं हो पाएगी कृत्रिम बारिश
पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक अब यह अगले कुछ महीने नही हो पाएगी, क्योंकि इसरो का विशेष विमान दूसरे मिशन में लग गया है। वही इस मुहिम के अगुवा आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर सच्चिदानंद त्रिपाठी का कहना है कि इसरो के विमान की व्यस्तता को देखते हुए अब वह इस तरह के काम मे इस्तेमाल होने वाले कुछ छोटे विमान की खोज कर रहे है।
मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक दिल्ली के लिये यह प्रयोग इसलिये भी अहम है, क्योंकि यहां साल में कई बार ऐसी स्थिति बनती है कि जब प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्थिति में पहुंच जाता है। ऐसे में कृत्रिम बारिश से इसे कम किया जा सकता है। मौजूदा समय मे दुनिया के कई देश इस तकनीक का इस्तेमाल करते हैं।