दुनिया भर में अंधेपन की दूसरी सबसे बड़ी वजह मानी जाने वाली बीमारी ‘ग्लूकोमा’ यानी ‘काला मोतिया’ के पीड़ितों के लिए उम्मीद की नई किरण दिखी है। वैज्ञानिकों ने एक ऐसी स्मार्ट डिवाइस तैयार की है, जो ग्लूकोमा के मरीजों की दृष्टि को बनाए रखने में मदद करती है।
ग्लूकोमा के मरीजों में ऑपरेशन के जरिये लगाए जाने वाली ड्रेनेज डिवाइस पिछले कई साल से लोकप्रिय हैं। हालांकि इनमें से कुछ ही डिवाइस हैं जो पांच साल से ज्यादा कारगर रह पाती हैं। इसकी वजह है कि ऑपरेशन के पहले और बाद में डिवाइस पर कुछ माइक्रोऑर्गेनिज्म (सूक्ष्म जैविक कण) इकट्ठा हो जाते हैं। इसकी वजह से डिवाइस धीरे-धीरे काम करना बंद कर देती है।
अमेरिका की परड्यू यूनिवर्सिटी के योवोन ली ने कहा, ‘हमने ऐसी डिवाइस तैयार कर ली है, जो इस परेशानी से पार पाने में सक्षम है। नई माइक्रोटेक्नोलॉजी की मदद से यह डिवाइस खुद को ऐसे सूक्ष्म जैविक कणों से मुक्त कर लेती है। ऐसे जैविक कणों को हटाने के लिए बाहर से चुंबकीय क्षेत्र की मदद से डिवाइस में कंपन पैदा किया जाता है। यह तकनीक ज्यादा सुरक्षित और कारगर है।’
आंख में ढेरों तंत्रिकाएं होती हैं, जो मस्तिष्क तक संदेश पहुंचाती हैं। जब आंख में प्रवाहित होने वाले द्रव के दबाव में असंतुलन से इन तंत्रिकाओं के काम पर प्रभाव पड़ने लगता है, उसे ही ग्लूकोमा कहते हैं। दबाव की प्रकृति और असर के हिसाब से ग्लूकोमा के अलग-अलग प्रकार होते हैं। प्रारंभिक स्तर पर इसके लक्षण दिखाई नहीं देते। जब तक इसके लक्षण समझ में आते हैं, तब तक आंखों को बहुत नुकसान पहुंच चुका होता है। इसके इलाज के लिए ऑपरेशन ही कारगर पाया गया है। हालांकि ऑपरेशन का परिणाम मरीजों की स्थिति और ग्लूकोमा के स्टेज पर निर्भर करता है।
अब तक मौजूद इलाज
कई दशकों से आंखों में से द्रव निकालने और द्रव का निर्माण रोकने के लिए आई-ड्रॉप्स का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि यह प्रभावी इलाज नहीं है क्योंकि कई बार मरीज इन्हें आंखों में डालना भूल जाते हैं। कई बार इससे मरीजों की आंखें सूज जाती हैं। ड्रॉप्स का इस्तेमाल न कर पाने से स्थिति गंभीर हो सकती है। ट्रैबेक्युलेक्टॉमी सर्जरी के जरिए भी ग्लूकोमा का इलाज किया जाता है। हालांकि सर्जरी बहुत गंभीर स्थिति में ही की जाती है।
ऐसे काम करेगी नई पद्धति
- इस पद्धति में आंखों में एक छोटा सा कट लगाकर उसके जरिए आंख के अंदर नली डाली जाएगी।
- यह नली आंख के अंदर जमा द्रव को खींचकर बाहर कर देगी।
- इसी दौरान लेजर से सिलीयरी ग्लैंड पर निशाना लगाया जाएगा जिससे आंखों में अत्यधिक द्रव का निर्माण न हो।
- यह तकनीक उन मरीजों पर इस्तेमाल की जा सकती है जिनका ग्लूकोमा गंभीर स्तर तक नहीं पहुंचा है।
- इसको मोतियाबिंद के ऑपरेशन के साथ कराया जा सकता है, जिससे बार-बार आंखों का ऑपरेशन न कराना पड़े।
मरीज के हिसाब से मिलेगा इलाज
नए ड्रेनेज डिवाइस की एक विशेषता यह भी है कि इसकी मदद से द्रव के प्रवाह को नियंत्रित किया जा सकता है। इसलिए ग्लूकोमा के अलग-अलग स्टेज के मरीजों के हिसाब से नियंत्रित करते हुए इसका प्रयोग संभव है।