विराट पर्व का जयघोष

शारदा पीठाधीश्वर जगद्‌गुरु शंकराचार्य स्वामी राजराजेश्वराश्रम महाराज

प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन होने जा रहा है। बारह साल बाद फिर फिर प्रयागराज में श्रद्धा आस्था और संस्कृति की त्रिवेणी का महापर्व मनाया जा रहा है.। महाकुंभ धर्म अध्यात्म और संस्कृति की त्रिवेणी है। इस बार के महाकुंभ को अगर विशेष कहा जा रहा है तो इसके पीछे आधार यह है कि इस महाकुंभ में स्नान का मौका व्यक्ति को जीवन में एक बार ही मिल सकता है। 144 साल बाद महाकुंभ का अवसर आ रहा है। बारह वर्ष बाद आय़ोजित होने वाले कुंभ को पूर्ण कुंभ कहा जाता है। और बारह पूर्णकुंभों के बाद यह महाकुंभ आता है। इसलिए इसके प्रति खास ललक है श्रद्धा है और विश्वास है। प्रयागराज के महाकुंभ में जिस तरह करोडों लोगों के आने की बात कही जा रही उसके पीछे सनातन की यह अटटू परंपरा है जिसका निर्वाह सदियों से हो रहा है। वसुधैव कुटुंबक्म का उद्घोष करने वाले सनातन धर्म का सर्वस्पर्शी आध्यात्मिक राष्ट्रीय सनातन परंपराओं से ओतप्रोत ये महाकुंभ का आयोजन है।

महाकुंभ पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक अटूट आस्था और विश्वास का प्रतीक है। सनातन धर्म पर लगातार आक्षेप कटाक्ष आलोचना करने वालों का उत्तर भी ये महाकुंभ दे रहा है। यह महाकुंभ का अवसर है जहां अमीर गरीब छोटे बड़े लोग बिना भेदभाव के पहुंचते हैं और लोग चना सत्तू जैसे खाने के सामान की पोटली लिए यहां आते हैं। महीने भर कड़ाके की सर्दी में त्रिवेणी के पावन जल में डुबकी लगाकर हर हर महादेव काउद्घोष करते हैं। और इस विराट पर्व के सहभागी होते हैं। यही उनकी अपनी सनातन धर्म के प्रति अगाध श्रद्धा का प्रतीक है। सनातन धर्म के ऊपर छुआछूत ऊंच नीच जातियों के भेदभाव के आरोप लगाए जाते रहे हैं। यहां तक कि लिखित में भी ये प्रचार प्रसार किया जाता रहा है । लेकिन गौर किया जाना चाहिए कि महाकुंभ का आयोजन मात्र पंचाग में लिखित तिथि को देखकर किया जाता है और इसे कोई संगठन या पंडितों का समूह नहीं कराता है। ये सनातन परंपरा में है। जिसमें स्नान करने के लिए करोड़ों लोग आते हैं। और ये संदेश देते हैं कि भारत की एकता सर्वोपरि है। और करोड़ों लोग जब स्नान करते हैं तो किसी तरह का भेदभाव नहीं होता। यही बात सनातन धर्म के आलोचकों को आइना दिखाती है। प्रयागराज में तीन नदियों की त्रिवेणी में स्नान कर लोग मोक्ष की कामना करते हैं। महाकुंभ में त्रिवेणी गंगा यमुना सरस्वती का स्नान का जो आशय है वो यही है कि सरस्वती ज्ञान का यमुना भक्ति का और गंगा वैराग्य का प्रतीक है। और यही सनातन के तीन स्तंभ भी हैं। सदियों से महाकुंभ के आयोजन की परंपरा चली आ रही है। महाकुंभ दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक अध्यात्मिक पर्व के रूप में है। महाकुंभ के आयोजन में जिस तरह लाखों करोड़ लोग उमडते हैं उससे दुनिया चौंकती है। यह सनातन परंपरा का अद्भुत अनूठा और भव्य आयोजन है। प्रयागराज के महाकुंभ में इस बार रिकार्ड श्रद्धालुओं के आने का अनुमान है । केंद्र और यूपी में योगी सरकार इसके लिए हर स्तर पर जोरदार तैयारी की जा रही है। प्रयागराज के महाकुंभ को भव्य और दिव्य बनाने के लिए यूपी की सीएम योगी आदित्यनाथ के निर्देशन में हर स्तर पर व्यवस्था की जा रही है।

सीएम योगी आदित्यनाथ ने कुंभनगरी में श्रद्धालुओं की सुविधा को सर्वोपरि माना है। सनातन की इस परंपरा के निर्वाह के लिए सीएम योगी आदित्यनाथ अपने दायित्व का निर्वाह पूरी तत्परता से कर रहे हैं। गौरक्षपीठ केपीठाधीश्वर सीएम योगी इस महाकुंभ के स्वरूप और अध्यात्मिकता को जानते हैं। खासकर तब जबकि इस बार का महाकुंभ विशेष है इसलिए महाकुंभ के हर पहलू पर उनकी गहरी निगाह है। केंद्र और राज्य दोनों जगह भारतीय संस्कृति आस्था को महत्व देने वाली सरकार है। केंद्र में पीएम मोदी ने सनातन की परंपरा को महत्व देने के लिए अथक प्रयास किए है। पीएम नरेंद्र मोदी का कहना है कि यह महायज्ञ एक नया नगर बसाने के महाभियान के माध्यम से प्रयागराज की इस धरती पर नया इतिहास रचने जा रहा है। कुंभ को यूनेस्कों से प्रशंसा मिलने पर प्रयागराज के कुंभ की भव्यता को लेकर और अपेक्षा बढ गई है। यूपी के सीएम य़ोगी आदित्यनाथ का कहना है कि पीएम नरेंद्र मोदी की प्रेरणा सफल कुंभ 2019 का आधार बनी थी। श्रद्धा आस्था संस्कृति का महापर्व भारत की सनातन परंपरा का उद्घोष है। यह विश्व का सबसे बड़ा सांस्कृतिक समागम है। महाकुंभ का भारत के लिए कई दृषिकोण से महत्व है। भारत विश्व बंधुत्व का उद्घोष करता रहा है। सनातन परंपरा किसी को आहत करने की नहीं बल्कि मानवीय सरोकारों से जुड़ी है। इसमें करुणा है आत्मीयता है परस्पर सद्भाव है। महाकुंभ के आयोजन से भारत देश दुनिया को यह संदेश देता है कि किस तरह अनेकता में एकता का दर्शन यहां होता है। किस तरह अलग अलग संप्रदाय अखाडे यहां आकर एक लय में होते हैं। दुनिया चौंकती है कि किस तरह करोड़ो लोगों का अपार जनसमुद्र कुंभ नगरियों में उमड़ता है। भारत के लिए इसका महत्व इसलिए भी है कि वर्तमान और आने वाली पीढी को सनातन का महत्व और उद्देश्य का अहसास होता रहे। महाकुंभ महज एक परंपरा नहीं बल्कि यह ज्ञान विज्ञान अध्यात्म का एक केंद्र है जहां का उद्घोष लोगों तक पहुंचता है।

महाकुंभ प्रकृति में ईश्वरीय भाव का आभास भी कराता है। यही वजह है कि कुंभ में नदियों की पवित्र धारा में डुबकियां लगाकर लोग आनंदित होते हैं। भारतीय संतों ने देश की एकता अखंडता और स्वतंत्रता के लिए अपने बलिदान भी दिए हैं। इसदेश के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए संतो की अपनी बड़ी भूमिका है। महाकुंभ में संतो का इकट्ठा होना अलग अनुभूति है। यह दुनिया का सबसे बड़ा आयोजन है। इसमें भारत की संस्कृति की झलक देखने को मिलेगी। कुंभ प्रकाश पुंज का निर्माण करता है जो मानव जीवन को संचालित करता है दिशा देता है। महाकुंभ देश की विविध कला को भी प्रदशित करता है। कलाकारों के ले कुंभ का बड़ा महत्व है। यहां जगह जगह कला के प्रतीक देखने को मिलेंगे। कई थीम नजर आएगी। भारतीय संस्कृति में महाकुंभ मेले का महत्व है। कुंभ मेला चार पवित्र स्थानों पर लगता है । इसमें हरिद्वार उज्जैन नासिक और प्रयागराज शामिल है। अर्धकुंभ पूर्ण कुंभ और महाकुंभ सदियो से चली आ रही सांस्कृतिक अध्यात्मिक यात्रा है। हर बारह वर्ष बाद क्रम से इन शहरों में पूर्णकुंभ का आयोजन होता है। इस बार का पूर्णकुंभ अपने आप में महाकुंभ भी है। कुंभ में सनातन धर्म के तपस्वी साधु सन्यासी साध्वी कल्पवासी तीर्थ में स्नान करने आते हैं। इस धार्मिक आयोजन में खगोलीय घटनाओं का भी महत्व है। बात अगर प्रयागराज महाकुंभ की करें तो जब बृहस्पति वृषभ राशि में और सूर्य मकर में होता है तब प्रयागराज में महाकुंभ लगता है। प्रयागराज की चर्चा वेद ऋचाओं में भी है। कहा गया कि माघ मकरगत रवि जब होई, तीरथपति आव सब कोई। यानी सूर्य जब मकर में आते हैं तो सभी देवीय महा ऋषि तीर्थ प्रयाग की ओर आते हैं। पूर्ण कुंभ के हर बारह वर्ष बाद होने के पीछे का आधार ज्योतिषि भी है और पौराणिक भी। ज्योतिष के आधार पर सूर्य चंद्र की स्थितियों के आधार पर हर बारह वर्ष बाद योग बनते हैं। जब बृहस्पति मेष राशि में हो और सूर्य चंद्र मकर में हों तो प्रयागराज में पूर्ण कुंभ होता है। पौराणिक कथाओं में कहा जाता है कि समुद्र मंथन में जब अमृत कलश बाहर निकला तो उसकी कुछ बूंदे चार स्थानों में छलकी। ये चारों स्थान प्रयागराज नासिक उज्जैन और हरिद्वार थे। -इन चारों स्थानों पर महाकुंभ की परंपरा पडी।

ये दिव्य भव्य और अनूठा पर्व है । सदियों से महाकुंभ की परंपरा चली आ रही है। महाकुंभ को दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मेला कहा जाताहै। महाकुंभ में विशेष अवसरों पर शाही स्नान की परंपरा है। अलग अलग अखाडों के आचार्य महामण्डलेश्वर, महामण्डलेश्वर और महंत पेशवाई यानी शोभा यात्रा के साथ कुंभ नगरी में प्रवेश करते हैं। अखाड़ों के महामण्डलेश्वर और महंत सजे हुए रथों पर आसीन होते हैं। पेशवाई में हाथी घोडे पर सवार होकर अखाड़ों के शाही जुलूस निकलते हैं। उनके अनुयायी भक्त नृत्य कीर्तन के साथ कुंभ नगरी के लिए पैदल चलते हैं। अखाड़ों की शोभायात्रा का यह दृथ्य अलौकिक होता है। महामण्डलेश्वर और महंत अपने अपने अखाडों की ध्वजा साथ में लेकर चलते हैं। पेशवाई अखाड़ों के वैभव शक्ति और अनुशासन का प्रतीक माना जाता है। यह परंपरा सदियों पुरानी है। विपरीत परिस्थितियों में भी संतों ने परंपरा को बना कर रखा है। गौरतलब है कि अखाड़ो को प्रमुख रूप से माना जाता है। आदि गुरु शंकराचार्य के जरिए जिन अखाड़ों की स्थापना की गई वो शस्त्र विद्या का ज्ञान रखते थे। ये अखाड़े हिंदू घर्म की रक्षा सनातन धर्म के पवित्र ग्रंथों और धार्मिकस्थलों की रक्षा भी करते रहे हैं। इन अखाड़ों के जरिए सनातन परंपराओं का भी सरंक्षण किया गया है। इन अखाड़ों का अपनी अपनी तरह से एक शानदार इतिहास है। इनकी अपनी अपनी परंपरा और इतिहास है। लेकिन सबका ध्येय सनातन की ध्वजा को कायम रखना है। महाकुंभ के धार्मिक अध्यात्मिक और पौराणिक माहात्मय के साथ ही सामाजिक आर्थिक महतव भी है। रेत पर बसने वाली महाकुंभ नगरी बड़े छोटे व्यवसायियों की आर्थिक स्थिति को भी सृदुढ करेगी।

महाकुंभ के इस स्वरूप को देखे तो प्रयागराज नगरी की आर्थिक स्थिति इससे मजबूत होगी। महाकुंभ में संत साधू ही नहीं देश विदेश के बड़े उद्यमी भी आ रहे हैं। कहा जा रहा है कि करोड़ों श्रद्धालुओं के यहां आने से दो से सवा दो लाख करोड से अधिक का कारोबार और आय होने की संभावना है। यह आय्य उद्यमियों के साथ साथ खाना पीने का सामान फूल माला पूजा का सामान बेचने वाले छोटे छोटे व्यापारियो को भी आर्थिक तौर पर मजबूत करेगा। हालांकि कुंभ आस्था से जुड़ा है। लेकिन इसके साथ साथ यह आर्थिकी को भी मजबूत करने वाला महापर्व है। जिस तरह महाकुंभ की तैयारी राज्य स्तर पर की जा रही है उसमें प्रदेश की आर्थिकी तंत्र भी बेहतर होगा। स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। कुंभ केवल कुंभ नगरी में ही नहीं बल्कि आसपास के जिले इलाकों के शिल्पियों कारिगरं के बाजार को भी अंतराष्ट्रीय पहचान दिलाने में सहायक है। यह बात रोमांचित करती है कि महाकुंभ में प्रयागराज के साथ वाराणसी अयोध्या का भी अध्यात्मिक त्रिकोण बनेगा। यही नहीं सरकार इस त्रिकोण केसाथ विंध्याचल और चित्रकूट को भी इसमें शामिल कर रही है। इन जगहों का आध्यात्मिक ऐतिहासिक सांस्कृतिक महत्व है। निश्चित महाकुंभ में प्रयागराज आने वाले श्रद्धालुओं में इन स्थलों को देखने की ललक भी जग सकती है। निश्चित इससे आर्थिकी को गति मिलेगी। इस तरह आज के परिप्रेक्ष्य में इस महाकुंभ के विराट स्वरूप को कई पहुलओं से देखा जा सकता है। दुनिया इस विराट पर्व पर गौर कर रही है । इसके गूढ़ तत्व को समझ रही है। इसके पीछे की भावना को जानने की कोशिश कर रही है। महाकुंभ का आयोजन भारत में ही संभव है।

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