अंग्रेजों की कूटनीति का फायदा उठाते हुए कई रियासतों ने अकेले और स्वतंत्र रहने का फैसला किया। आजाद भारत के लिए इन रियासतों का जिद पर अड़े रहना सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक रूप से बिल्कुल ठीक नहीं था। लगभग सभी रियासतों को गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने एकजुट कर दिया था, लेकिन जम्मू-कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद इस लिस्ट में सबसे टॉप के बागी थे।
कई प्रयासों के बाद जम्मू-कश्मीर और जूनागढ़ का भारत में विलय हो गया, लेकिन इसके बाद भी हैदराबाद रियासत के निजाम किसी भी कीमत पर भारत में विलय के प्रस्ताव को स्वीकार करने पर सहमत नहीं थे। आखिरकार वल्लभ भाई पटेल के अडिग सैन्य कार्रवाई का असर हुआ। निजाम ने भारत सरकार के सामने सरेंडर करते हुए भारत में विलय की घोषणा की। मगर, क्या यह इतना आसान था?
दरअसल, 11 सितंबर को पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की मौत हुई और उसके एक दिन बाद यानि 12 सितंबर को भारतीय सेना ने हैदराबाद में सैन्य अभियान शुरू किया। 13 सितंबर 1948। ये वो तारीख है जब भारतीय सेना ने ऑपरेशन पोलो की शुरुआत की और रजाकारों को उनकी औकात दिखाई।
सरदार पटेल ने हैदराबाद को भारत के पेट में कैंसर कहा था और राज्य में शांति व्यवस्था और सुरक्षा बनाए रखने के लिए सैन्य कार्रवाई की ठानी। ऑपरेशन की योजना बहुत सावधानी से बनाई गई थी। भारतीय सेना को स्थानीय आबादी का भी समर्थन प्राप्त था, जो निजाम के शासन के अंत को देखने के लिए उत्सुक थे।
13 सितंबर, 1948 की सुबह 4 बजे भारतीय सेना मेजर जनरल जे एन चौधरी के नेतृत्व में हैदराबाद अभियान शुरू कर चुकी थी। महज पांच दिन के अंदर 17 सितंबर, 1948 की शाम 5 बजे निजाम उस्मान अली ने रेडियो पर संघर्ष विराम और रजाकारों पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की। इसके साथ ही, हैदराबाद में भारत का पुलिस एक्शन समाप्त हो गया।
17 सितंबर की शाम 4 बजे हैदराबाद रियासत के सेना प्रमुख मेजर जनरल एल ईद्रूस ने अपने सैनिकों के साथ भारतीय मेजर जनरल जे एन चौधरी के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इसके बाद हैदराबाद रियासत की भारत संघ में विलय की घोषणा की।