इस बार न केवल टोक्यो का रिकॉर्ड टूटा बल्कि 29 मेडल का एक ऐसा स्टैंडर्ड भी सेट कर दिया गया जो अगले पैरालंपिक खेलों में एक मानक की तरह काम करेगा। भारत का पैरालंपिक में मेडल हासिल करने का सफर 1972 में हीडलबर्ग से शुरू हुआ था। तब भारत को एक ही मेडल मिला था लेकिन यह गोल्ड मेडल था। मुरलीकांत पेटकर ने फ्रीस्टाइल स्विमिंग में मेडल जीतकर भारत के लिए पैरालंपिक मेडल की शुरुआत की थी। फिल्म चंदू चैंपियन इसी चैंपियन की जिंदगी के ऊपर आधारित है।
इसके बाद 1984 में न्यूयॉर्क में हुए पैरालंपिक खेलों में भारत के मेडल की संख्या तो चार हुई लेकिन गोल्ड मेडल नहीं आ सका था। 2004 में एथेंस में हुए पैरालंपिक खेलों में भारत को फिर एक गोल्ड मेडल मिला और एक ब्रॉन्ज मेडल भी जीता। इस बार कुल दो पदक मिले। लंदन पैरालंपिक खेलों में भारत को 1 ही ब्रॉन्ज मेडल मिला। तब ओलंपिक खेलों में भारत ने 6 मेडल जीतकर इतिहास रचा था।
इसके बाद 2016 के रियो पैरालंपिक खेलों में भारत ने 2 गोल्ड और 1-1 सिल्वर व ब्रॉन्ज मेडल समेत 4 पदक जीते। यह पैरालंपिक खेलों में देश का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। इसके बाद आए ऐतिहासिक टोक्यो पैरालंपिक खेलों (2020) ने सब बदलकर रख दिया। इन खेलों में भारत ने 5 गोल्ड मेडल जीते। इसके साथ 9 सिल्वर और 13 ब्रॉन्ज मेडल ने देश को कुल मिलाकर 19 पदक दिए। टोक्यो ओलंपिक ने यह विश्वास पुख्ता किया था कि भारत पैरालंपिक खेलों में कमाल करके दिखा सकता है।
अब पेरिस पैरालंपिक ने इस भरोसे को न केवल मजबूत किया है बल्कि आगे के लिए नई उड़ान की उम्मीद भी दी है। अपेक्षा बढ़ चुकी हैं कि भारत पैरालंपिक खेलों में अगली बड़ी ताकत के तौर पर भी उभर सकता है। पेरिस पैरालंपिक खेलों में भारत ने 7 गोल्ड, 9 सिल्वर और 13 ब्रॉन्ज मेडल जीते हैं। कुल पदक की संख्या 29 रही है।