अयोध्या। समाज में परिवर्तन के लिए बालकों में संस्कार युक्त शिक्षा देना अनिवार्य है।बालक–बालिका भविष्य के भारत निर्माण के आधार हैं।बाल स्वभाव और बाल मन में समाज के प्रति आदर और राष्ट्र के प्रति प्रेम का भाव जगाना ही शिक्षा का सोपान है। उक्त बातें साकेत निलयम में चल रही अखिल भारतीय मंत्री समूह कार्यशाला के समापन समारोह में विद्या भारती के अखिल भारतीय संगठन मंत्री यतीन्द्र शर्मा ने कही। उन्होंने कहा कि समाज में परिवर्तन के लिए विद्या भारती लौकिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा के साथ ही भारतीय शिक्षण पद्धति एवं भारतीय संस्कृति पर जोर देती है।
कार्यशाला में देशभर से राष्ट्रीय मंत्री, संगठन मंत्री, क्षेत्रीय मंत्री, प्रांत मंत्री सहित कुल 70 पदाधिकारी चिंतन मंथन में प्रतिभाग किए। तीन दिन की कार्यशाला में कुल 12 विषयों पर मंथन हुआ। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप पाठ्यक्रम संचालित करने से बच्चों में समग्र विकास होगा और पुनः भारत विश्व गुरु बनने की दिशा में आगे बढ़ेगा समापन सत्र में बोलते हुए यतीन्द्र शर्मा ने कहा की समझ में अच्छे लोगों को आगे आकर शिक्षण –शिक्षा और अध्यापक जैसे श्रेष्ठ कार्य को करना चाहिए।श्रेष्ठ समाज निर्माण से अपने मातृभूमि, अपने गुरु तथा अपने माता-पिता के प्रति आदर का भाव उपजता है।भारत शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र हुआ करता था, पूरे दुनिया से लोग शिक्षा के लिए भारत में आते थे। आज पुनः आवश्यकता है भारत अपने स्व के साथ खड़ा हो। कार्यकर्ता प्रशिक्षण से व्यक्तित्व निर्माण होता है। भारत की शिक्षा का आधार हिंदुत्व,भारतीय ज्ञान परंपरा है। ऋषियों द्वारा जीवन जीने का मार्ग हमारे शिक्षा में है। स्वतंत्रता की भावना को स्व जोड़ने का प्रयास शिक्षा से करना होगा। हजारों वर्षों के संघर्ष में रहने वाला भारतीय समाज आज भी अपने मूल के साथ खड़ा है। अंग्रेजों द्वारा भारतीय शिक्षा के प्रति गलत विमर्श खड़ा किया गया। भारतीय शिक्षा का धर्म ही आधार है।हम विश्व कल्याण की बात करते हैं। सबके सुख की कल्पना ही हमारी शिक्षा का उद्देश्य है। तीन दिवसीय कार्यशाला में देश भर से अनेक शिक्षाविद,चिंतक, विचारक और विद्या भारती के आधिकारिक उपस्थित थे।