इस मंदिर में हिंदू और मुस्लिम दोनों टेकते हैं माथा,जानिए इसके पीछे की वजह

भरतपुर जिले में स्थित भगवानपुर गांव का चांग देवी मंदिर,न केवल अपनी धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां हिंदू और मुस्लिम धर्म के लोग एकसाथ आकर अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं, इस अनोखे मंदिर की कहानी और इतिहास बहुत ही दिलचस्प है, आइए जानें.

देशभर के प्राकृतिक और पुरातात्विक स्थलों पर देवी मां शक्ति के कई रूप विद्यमान हैं. इन्हीं रूपों में से एक है मां चांग देवी चांगभाखर, जो छत्तीसगढ़ के मनेंद्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर जिले के जनकपुर से महज 7 किलोमीटर दूर भगवानपुर नामक गांव में स्थित हैं. पिछले कई वर्षों से चैत्र और शारदीय नवरात्रि के दौरान यहां विशेष पूजा की जाती है. आइए जानते हैं इस मंदिर का इतिहास और यह मंदिर क्यों प्रसिद्ध है.

चांगभखार रियासत की कुलदेवी होने के कारण इस मंदिर को चांग देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है. चांगभखार रियासत के राजा बालंद को देवी का वरदान प्राप्त था, जिसके कारण उन्हें युद्ध में हराना असंभव था. राजा बालंद ने यह वरदान चौहान वंश के राजा को बताया था, और यह भी कहा था कि उन्हें लकड़ी की तलवार से ही हराया जा सकता है. इस जानकारी का उपयोग करके चौहान राजा ने लकड़ी की तलवार से राजा बालंद को पराजित किया. आज भी वह लकड़ी की तलवार भरतपुर विकासखंड के खोहरा नामक स्थान पर मौजूद है.

धार्मिक महत्ता और एकता की मिसाल

इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग श्रद्धापूर्वक माथा टेकने आते हैं. मुस्लिम धर्म के अनुयायियों का मानना है कि माता चांग देवी हमारे इलाके की कुलदेवी हैं, इसलिए वे भी यहां आकर श्रद्धा प्रकट करते हैं. यह मंदिर धार्मिक एकता की एक जीती-जागती मिसाल है.

नवरात्रि का विशेष महत्व

चांग देवी मंदिर एक सिद्ध पीठ है, इसलिए यहां शारदीय और चैत्र नवरात्रि के अवसर पर भारी भीड़ उमड़ती है. न केवल भरतपुर और आसपास के इलाकों से, बल्कि मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश तक से श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं. नवरात्रि के पावन अवसर पर मंदिर में अखंड ज्योति प्रज्वलित की जाती है, जो भक्तों की आस्था और मनोकामना पूर्ति का प्रतीक मानी जाती  है.

मंदिर की अन्य विशेषताएं

मंदिर परिसर में देवी की प्रतिमा के समक्ष भक्त अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए ज्योत जलाते हैं. मंदिर के पास ही जवारा कक्ष है, जहां नवरात्र के विशेष अवसर पर जवारे बोए जाते हैं. यह परंपरा सालों से चली आ रही है और श्रद्धालुओं के विश्वास का प्रतीक है.

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