लोक और राष्ट्र कल्याण से जुड़ी है भारत की ऋषि परंपरा : सीएम योगी

गोरखपुर, 21 जुलाई: गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि भारत की सनातन ऋषि परंपरा व गुरु परंपरा लोक और राष्ट्र कल्याण की परंपरा है। यह परंपरा हमें इस बात के लिए प्रेरित करती है कि हमारे जीवन का एक-एक कर्म, एक-एक क्षण सनातन के लिए, समाज के लिए, राष्ट्र के लिए समर्पित होना चाहिए। ऐसा करके ही हम गुरु परंपरा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर सकते हैं। गोरक्षपीठ भी उसी गुरु परंपरा की पीठ है जो अहर्निश लोक कल्याण और राष्ट्र कल्याण के लिए कार्य कर रही है।

सीएम योगी रविवार को गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर गोरखनाथ मंदिर के महंत दिग्विजयनाथ स्मृति भवन में विगत 15 जुलाई से चल रही श्रीरामकथा के विश्राम सत्र और गुरु पूर्णिमा महोत्सव को संबोधित कर रहे थे। गोरक्षपीठ के ब्रह्मलीन महंतद्वय दिग्विजयनाथ जी महाराज एवं महंत अवेद्यनाथ जी महाराज के चित्र पर पुष्पार्चन करने तथा व्यासपीठ का पूजन करने के उपरांत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि सनातन संस्कृति में ऋषि के साथ गोत्र की परंपरा भी साथ में चलती है। जब गोत्र की बात होती है तो जाति भेद समाप्त हो जाता है। हर गोत्र किसी न किसी ऋषि से जुड़ी है और ऋषि परंपरा जाति, छुआछूत या अश्पृश्यता का भेदभाव नहीं रखती है। एक ऋषि के गोत्र को कई जातियों के लोग अनुसरित करते हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि भारतीय संस्कृति दुनिया में सर्वाधिक और समृद्ध और प्राचीन है और सनातन पर्व-त्योहार इसके उदाहरण हैं। ये पर्व-त्योहार भारत को और सनातन धर्मावलंबियों को इतिहास की किसी न किसी कड़ी से जोड़ते हैं।

भारत के अलावा 5000 वर्ष का इतिहास दुनिया में किसी के पास नहीं

सीएम योगी ने कहा कि गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। यह महर्षि कृष्ण द्वैपायन व्यास की जयंती है जिनकी कृपा से वैदिक साहित्य प्राप्त हुए हैं। जिन्होंने वेदों, पुराणों और अनेक महत्वपूर्ण शास्त्रों को उपलब्ध कराया है। उन्होंने कहा कि 5000 वर्ष पहले महर्षि व्यास इस धराधाम पर थे। उस कालखंड में उन्होंने कई पीढ़ियों का प्रतिनिधित्व किया। अनेक ग्रंथों की रचना कर उसे वर्तमान पीढ़ी के मार्गदर्शन के लिए भी अनुकूल बना दिया। भारत के अलावा 5000 वर्ष का इतिहास दुनिया में किसी के पास नहीं है। वर्तमान समय द्वापर और कलयुग का संधिकाल है। महाभारत के युद्ध के बाद महर्षि वेदव्यास ने श्रीमद्भागवत पुराण रचा जो मुक्ति और मोक्ष के मार्ग पर चलने को प्रेरित करने वाला पवित्र ग्रंथ है।

जैसा कर्म करेंगे, उसी के अनुरूप मिलेगा फल

गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने कहा कि माता-पिता पहले गुरु हैं। इसके बाद स्कूली शिक्षक, पुरोहित-कुलगुरु, बड़ा भाई, और ऋषि-संतों की परंपरा, गोत्रों की परंपरा भी गुरु परंपरा में सम्मिलित होती है। गुरु परंपरा का उद्देश्य मनुष्य को अच्छे मार्ग पर अग्रसर करना है। माता-पिता, बड़ा भाई, पुरोहित-कुलगुरु, संत, ऋषि इसी उद्देश्यपरक कार्य के हितैषी होते हैं। उन्होंने कहा कि हम जैसा कार्य करेंगे, परिणाम भी उसी के अनुरूप मिलेगा। अच्छा कार्य करेंगे तो अच्छा फल मिलेगा और गलत काम करेंगे तो उसका फल भी हमें ही भुगतना होगा। इस संबंध में उन्होंने महर्षि वाल्मीकि के संत बनने से पूर्व के जीवन की कथा भी सुनाई और संदेश दिया कि कोई भी गलत काम में हासिल होने वाले पाप में भागीदारी नहीं बनना चाहता है। सीएम योगी ने कहा कि भगवान श्रीराम ने जीवन में मर्यादा को महत्व दिया। हर कार्य की लक्ष्मण रेखा तय की, संबंधों को मर्यादित तरीके से जीना सिखाया। इसी तरह भगवान श्रीकृष्ण ने कर्म की प्रेरणा दी। आज अधिकतर लोग कम कर्म के बदले अधिक हाईलाइट होने के प्रयास में रहते हैं। जबकि भगवान श्रीकृष्ण ने निष्काम कर्म की प्रेरणा दी है। यानी कर्म करो, फल की चिंता मत करो। हमारे शास्त्र और गुरु परंपरा में भी कहा गया है- अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्। अर्थात जैसा कर्म करेंगे, उसके अनुरूप फल से वंचित नहीं रहेंगे। जो करेंगे, उसके अनुरूप परिणाम अवश्य भोगना पड़ेगा।

सही मार्ग पर चलने को प्रेरित करता है सच्चा गुरु

सीएम योगी ने कहा कि सच्चा गुरु वही है, जो सही मार्ग पर चलने को प्रेरित करे। हमारे जीवन में महत्व धन-धान्य का नहीं है बल्कि सद पुरुषार्थ से हासिल उस समृद्धि से है जो लोक कल्याण के कार्य आ सके। यदि हम गलत तरीके से समृद्धि अर्जित करेंगे तो पाप कृत्य के भागी होंगे। जबकि यदि हम वंचितों पर उपकार करेंगे, जीवमात्र के प्रति दया का भाव रखेंगे तो उसका पुण्य लाभ अवश्य प्राप्त होगा। गुरु का कार्य सही और गलत में अंतर बताकर सही मार्ग दिखाने का होता है।

मनुष्य सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ कृति, इसे अपने कर्म से साबित भी करना होगा

मुख्यमंत्री ने कहा कि मान्यता है कि मनुष्य इस सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ कृति है। इस मान्यता को अपने कार्यों से साबित करने का दायित्व भी मनुष्य का ही है। हमारे शास्त्र और हमारी ऋषि परंपरा इसी दायित्व का बोध कराने वाली है। ऋषि परंपरा और अवतारी विभूतियों के मार्ग का अनुसरण करते हुए हमें ऐसा कार्य करना चाहिए जो समाज, राष्ट्र और धर्म के अनुकूल हो। ऐसा कार्य खुद व परिवार के अनुकूल आप ही हो जाता है।

आरती के साथ हुआ श्रीरामकथा का विश्राम

गुरु पूर्णिमा के उपलक्ष्य में 15 जुलाई से चल रही श्रीरामकथा का विश्राम व्यासपीठ पर विराजमान श्रीरामचरितमानस ग्रंथ की आरती के साथ हुई। सबसे पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आरती उतारी। इस अवसर पर उन्होंने कथाव्यास बाबा बालकदास के प्रति आभार भी व्यक्त किया और कहा कि हर व्यक्ति को कुछ समय ऐसी कथाओं के श्रवण के लिए जरूर निकालना चाहिए। कार्यक्रम में गोरखनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ, देवीपाटन शक्तिपीठ के महंत मिथिलेशनाथ, महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के अध्यक्ष प्रो. यूपी सिंह, कालीबाड़ी के महंत रविंद्रदास, श्रीरामजानकी हनुमान मंदिर के महंत रामदास समेत कई जनप्रतिनिधि, शिक्षाविद, प्रबुद्धजन व बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की सहभागिता रही।

चार स्थानों पर लगा भंडारा, श्रद्धालुओं ने ग्रहण किया प्रसाद

श्रीरामकथा के विश्राम और गुरु पूर्णिमा महोत्सव के अवसर पर गोरखनाथ मंदिर परिसर के चार स्थानों महंत दिग्विजयनाथ स्मृति भवन के सामने, साधना भवन, मंदिर के मुख्य भंडारा भवन और प्रथम तल पर भंडारा का आयोजन किया गया। इन सभी स्थानों पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया।

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