लखनऊ : केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, लखनऊ परिसर में बौद्धदर्शन एवं पालि विद्याशाखा द्वारा 08 जुलाई, 2024 से 18 जुलाई, 2024 तक दस दिवसीय ‘व्यावहारिक पालि व्याकरण शिक्षण कार्यशाला’ का आयोजन चल रहा है। आज कार्यशाला के तीसरे दिन पालि विभक्तियों का परिचय कराया गया तथा शब्द रूपों को याद करने की प्रविधि सिखाई गई। कार्यशाला में रिसोर्स पर्सन के रूप में डॉ. प्रफुल्ल गड़पाल ने बताया कि ‘पालि एक सरल भाषा है। थोड़े से अभ्यास से कोई भी सरलता से पालि सीख सकता है।
भारत की प्राचीन भाषा होने के कारण भारतीय भाषाओं में पालि के शब्द बहुत बड़ी मात्रा में प्राप्त होते हैं। कुछ शब्दों को थोड़ा परिवर्तित कर पालि शब्दावली की तरह प्रयोग किया जा सकता है। वर्तमान उत्तर प्रदेश तथा बिहार को प्राचीन काल में मज्झिम देश कहा जाता था। पालि इस मज्झिम देश की जन भाषा हुआ करती थी। आज भी उत्तर प्रदेश तथा बिहार में बोली जाने वाली भाषाओं एवं बोलियों में पालि के शब्द यथावत् प्राप्त होते हैं। व्याकरणिक दृष्टि से पालि की कठिनता का स्तर बहुत कम है। प्रत्येक भारतीय को अपनी यह प्राचीन भाषा अवश्य सीखनी चाहिए।