नागपुर। इस बार के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को नुकसान पहुंचाने वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र का नंबर आता है। राज्य में लोकसभा की 48 सीटों में एनडीए को 17 सीटों पर संतोष करना पड़ा है। 2019 के चुनाव में 23 सीटें जीतने वाली भाजपा महज 9 सीटों पर सिमट गई। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सुनील कुहीकर ने इस के लिए ‘एफएमपओआर’ यानी फारमर (किसान), मराठा आंदोलन, ओबीसी फैक्टर और रियूमर (अफवाह) इन चार मुद्दों को अहम करार दिया।
देश में पहली बार 2014 में जब नरेन्द्र मोदी कि अगुवाई मे भाजपा ने हुंकार भरी थी तो किसी जमाने में कांग्रेस का गढ़ कहलाने वाला महाराष्ट्र सत्ता की इमारत में लगे खंभे की तरह साथ खड़ा दिखाई दिया था। उस समय की अविभाजित शिवसेना और भाजपा ने राज्य में 48 में से 43 सीटें हासिल कर कांग्रेस और एनसीपी के छक्के छुड़ा दिए थे। मगर 4 जून को घोषित लोकसभा चुनाव के परिणाम में भाजपा और उसके सहयोगी दल शिवसेना (शिंदे गुट) एनसीपी (अजित पवार) सभी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा। नतीजतन भाजपा को 9, शिवसेना को 7 और एनसीपी (अजित पवार) को एक सीट हासिल हुई। वरिष्ठ पत्रकार सुनील कुहीकर का कहना है कि राज्य में किसान, मराठा आंदोलन, ओबीसी फैक्टर और अफवाहों के चलते भाजपा और उसके सहयोगी दलों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है।
बतौर कुहीकर राज्य के मराठवाड़ा में भाजपा एक भी सीट नहीं जीत पाई। इसकी अहम वजह मराठा आरक्षण आंदोलन है। राज्य सरकार ने जिस तरह आंदोलन को मैनेज किया, उसी वजह से उसे इस क्षेत्र की 8 सीटें खोनी पड़ी। आंदोलन के दबाव में मराठा समाज का 10 प्रतिशत कोटा तो आ गया, मगर कोर्ट में फंस गया। एक समय ऐसा आया कि मराठा आरक्षण को लेकर राज्य के ओबीसी नाराज हो गए। ओबीसी समाज भाजपा का एक ठोस वोट बैंक रहा है, सो मराठा आरक्षण के राजनीतिक निहितार्थ भी निकाले गए। नतीजतन मराठा और ओबीसी दोनों भाजपा से नाराज हो गए।
कुहीकर का मानना है कि इसका चुनाव पर खासा असर पड़ा है। साथ ही राज्य कि बड़ी आबादी खेती-किसानी से जुड़ी है। पश्चिमी महाराष्ट्र गन्ना बेल्ट, उत्तरी महाराष्ट्र प्याज, विदर्भ और मराठवाड़ा सोयाबीन और कपास के लिए जाना जाता है। सभी क्षेत्रों में किसानों की नाराजगी साफ देखी जा सकती है। किसान पहले से ही क्लाइमेंट चेंज की वजह से परेशान है और कृषि नीतियों से उसपर दोहरी मार पड़ रही है। चुनाव के दौरान विपक्ष की फैलाई अफवाह पर कुहीकर ने कहा कि राज्य में दलित आबादी लगभग 11 फीसदी है। प्रचार के दौरान यह आरोप लगे कि भाजपा संविधान बदलना चाहती है, आरक्षण छीन लेगी। ऐसी अफवाह से पार्टी को काफी नुकसान हुआ।
वह कहते हैं कि कुछ कारण राजनीतिक भी रहे। शिवसेना और एनसीपी का दो धड़ों में बटना और भाजपा की विचारधारा से अलग रहे अजित पवार का भाजपा के साथ बैठना जनता को नागवार गुजरा। पश्चिम महाराष्ट्र और कोंकण के लोग कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी के बेहद करीब हैं। भाजपा के बड़े नेता विदर्भ से आते हैं। नतीजतन इन इलाकों में भाजपा वैसी नहीं घुल पाई जैसे इंडी गठबंधन के दल हिले-मिले हुए हैं। इसके चलते शिवसेना और एनसीपी का टूटना और दो धड़ों में बांटा जाना लोगों को रास नही आया।
ईडी और सीबीआई के छापों से भी लोग खासे नाराज नजर आए। बतौर कुहीकर इन सभी वजह से इस बार भाजपा और उसके सहयोगी दलों का चुनाव में काफी नुकसान हुआ है। इस अलावा उम्मीदवारों के चयन में भी भाजपा से चूक हुई है। कुहीकर ने आगाह किया है कि यदि लोकसभा चुनाव से सबक नहीं लिया गया तो आगामी विधानसभा चुनाव में एनडीए को और बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।