16 अक्टूबर का दिन जब रावलपिंडी के कंपनी बाग में लोगों की काफी भीड़ अपने प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को सुनने के लिए जमा थी। लियाकत अली खान ने ज्यों ही अपना भाषण शुरू किया तभी अचानक से उनके ऊपर गोलियों की बौछार शुरू हो गई। वहां पर अफरा-तफरी का माहौल था। गोलियों की आवाज सुनकर लोग खुद को बचाने के लिए बेताहाशा इधर-उधर भाग रहे थे। लेकिन हत्यारे के निशाने पर कोई और नहीं बल्कि केवल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ही थे। जब तक वहां पर सुरक्षाकर्मी संभल पाते तब तक गोलियां लियाकत अली का सीना चीर कर अंदर घुस चुकी थीं। उनके शरीर से बेतहाशा खून बह रहा था। बाद में सुरक्षाबलों की गोलियों ने हत्यारे को भी मौके पर ही मार गिराया। पाकिस्तान के इतिहास में यह पहली राजनीतिक हत्या थी। इतना ही नहीं यह ऐसी हत्या थी जिसका राज आज तक भी राज है। इस पूरे हत्याकांड में कई सवालों के जवाब आज आज तक नहीं मिल सके।
अकबर ने चलाई थी गोलियां
भीड़ के बीच से जिस शख्स ने लियाकत अली खान पर गोलियां चलाई थीं उसका नाम सईद अकबर खान बबराकजई था और वह एक अफगानी था। वह पीएम के स्टेज के ठीक सामने बैठा था। वह जगह खुफिया अधिकारियों के लिए सुरक्षित थी। आज तक इसका राज नहीं खुल सका कि आखिर वह उस जगह पर कैसे पहुंचा और किसने उसको वहां पर बिठाया। इसको इत्तफाक ही कहा जाएगा कि कभी उसके पिता ने अफगानिस्तान के राजा अमानुल्लाह खान के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी थी। इस हत्याकांड की वजह आज तक साफ नहीं हो सकी कि आखिर क्यों अकबर ने इसको अंजाम दिया। कहा तो ये भी जाता है कि वह सिर्फ मोहरा था उसके पीछे किसी दूसरी ताकत का हाथ था जिसका आज तक पता नहीं चल सका। इतना ही नहीं जहां लियाकत को गोली मारी गई कुछ ही देर बाद उस जगह को पानी से धो दिया गया जिससे वहां सारे सुबूत मिट गए। यही वजह थी कि वहां से फोरेंसिक सुबूत भी नहीं जुटाए जा सके।
मौजूदा भारत के राज्य हरियाणा के जिला करनाल में जन्मे लियाकत अली खान पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री थे। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवसिर्टी से डिग्री हासिल की थी। वह जिन्ना के करीबी सहयोगी भी थे। हालांकि कुछ समय के बाद ही दोनों के बीच मनमुटाव की भी खबरें आनी शुरू हो गई थीं। इसकी वजह यह भी थी कि लियाकत उन लोगों में शामिल थे जो मुल्क के बंटवारे के बाद पाकिस्तान में बस गए थे। ऐसे लोगों को वहां पर मुहाजिर कहा जाता है। पाकिस्तान बनने के बाद से लेकर आज तक भी इन मुहाजिरों को वहां पर अपनाया नहीं जा सका है। लियाकत को आधुनिक पाकिस्तान का जनक भी माना जाता है। अमेरिका के साथ रिश्ते बनाने में उनका काफी योगदान रहा। जिन्ना की मौत के बाद वह पाकिस्तान के सबसे ताकतवर नेता भी थे। अमेरिका और सोवियत रूस के बीच छिड़े शीत युद्ध के दौरान लियाकत ने बड़ी समझदारी के साथ अमेरिका के करीब जाने में अपनी भलाई समझी थी। यह दौर वो था जब भारत और पाकिस्तान के लिए इन दोनों में से किसी एक को चुनने की बात थी। तब भारत ने रूस के साथ आगे बढ़ने में अपनी भलाई समझी थी।
लियाकत की हत्या से जुड़ी कई कहानियां
लियाकत की हत्या के बाद कई तरह की चर्चाओं को बल मिला। इसमें से एक में कहा गया कि उनकी हत्या सोवियत रूस की खुफिया एजेंसी ने कराई थी। इसकी वजह यह बताई जा रही थी कि शीत युद्ध के दौरान पाकिस्तान के अमेरिका के साथ जाने से सोवियत रूस काफी नाराज था, वहीं दूसरी तरह यह जग जाहिर हो चुका था कि लियाकत अमेरिकी परस्त हैं। इससे ही नाराज होकर सोवियत रूस ने इस हत्याकांड को अंजाम दिया।
दूसरी चर्चा इस हत्याकांड के पीछे अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA को लेकर थी। दरअसल, 1949 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रूमैन ने भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को अपने यहां पर आने का न्योता दिया था, जिससे लियाकत काफी नाराज थे। तब ईरान में पाकिस्तान के राजदूत राजा गजानफार ने लियाकत को सोवियत के साथ जाने की सलाह दी थी। इसके बाद लियाकत भी सोवियत रूस के साथ जाने को तैयार हो गए थे। लेकिन इस कदम से अमेरिका ही नहीं बल्कि ब्रिटेन भी खफा था। ब्रिटेन की तरफ से तो खुलेआम ऐसा न करने की धमकी तक दे दी गई थी। यही वजह थी कि लियाकत ने अपना मास्को जाने का तय दौरा रद कर दिया। लेकिन अमेरिका का भरोसा जीतने में कामयाब नहीं हो सके, जिसके चलते उन्हें रास्ते से हटा दिया गया।
एक तीसरे थ्योरी यह भी है कि लियाकत के सुरक्षाकर्मियों ने अकबर पर बिना सोचे समझे ही गोली चला दी थी, जबकि उसका इस हत्याकांड में कोई हाथ ही नहीं था। सईद के पास ऐसा करने की कोई वजह नहीं थी। न वह कोई राजनीतिक व्यक्ति था, न ही उसकी लियाकत या उनकी राजनीति से नफरत का ही कोई खुलासा हो सका। इतना ही नहीं वह लियाकत को न तो जानता था न ही पहचानता ही था। इसके बाद वह यह भी जानता होगा कि इस हत्या के बाद न तो वह खुद को बेगुनाह साबित कर पाएगा और न ही जिंदा बच पाएगा, फिर उसने ऐसा क्यों किया होगा।
ऐसा भी कहा जाता है कि इस हत्याकांड के पीछे पाकिस्तान के ही कुछ सियासी चेहरों की मिलीभगत रही होगी जिन्होंने अपने फायदे के लिए अकबर का इस्तेमाल किया था। इसके कहीं न कहीं पाकिस्तान के खुफिया अधिकारी से लेकर लियाकत के करीब रहने वाले सुरक्षाकर्मी भी शामिल रहे होंगे। जिस वक्त लियाकत की हत्या हुई थी तब तक देश का अपना संविधान तक नहीं बन सका था। पाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता के पीछे यह एक बड़ी वजह बनी जिसको आज तक पाकिस्तान झेल रहा है। पाकिस्तान में 1973 में संविधान लागू हुआ। लियाकत की जहां पर हत्या की गई बार में उसका नाम बदलकर लियाकत बाग कर दिया गया। वर्ष 2007 में एक बार फिर से यह बाग दोबारा चर्चा में उस वक्त आया जब देश की पूर्व प्रधानमंत्री बेनेजीर भुट्टो की यहां पर हत्या कर दी गई थी।