बाहरी दुनिया से बहुत दूर रहने वाला उत्तर कोरिया और उसका तानाशाह किम जोंग-उन पिछले कुछ महीने से मीडिया की सुर्खियों में रहे हैं। पांच माह पूर्व किम जोंग उन और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच सिंगापुर में हुई मुलाकात पर दुनिया की नजरें टिकी थीं। दोनों नेताआें के बीच यह मुलाकात इसलिए भी खास थी, क्योंकि 1950-53 में हुए कोरियाई युद्ध के बाद से अब तक अमेरिका और उत्तर कोरिया के नेता कभी नहीं मिले और न ही फोन पर बात की।
उत्तर कोरियाई नेता किम एक बार फिर सुर्खियों में हैं। यह कयास लगाए जा रहे हैं कि इस बार उनकी नजर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) और विश्व बैंक पर टिकी है। किम इन एजेंसियों में शामिल होने के लिए सभी बाधाओं को दूर करने में जुटे हैं। यही वजह है कि किम करीब सात दशकों बाद अमेरिका से दोस्ताना संबंध बनाने के इच्छुक दिखे। राष्ट्रपति ट्रंप से मुलाकात शायद इसी कड़ी के रूप में ही देखा जा रहा है। हालांकि अभी तक किम ने ऐसी किसी घोषणा का ऐलान नहीं किया है। सवाल यह है कि आखिर, उत्तर कोरिया अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) और विश्व बैंक की सदस्यता के लिए क्यों इच्छुक है। अगर उत्तर कोरिया इन एजेंसियों में शामिल हो गया तो उसके क्या फायदे होंगे। उत्तर कोरिया के समक्ष सबसे बड़ी बाधा कौन सी है।
उत्तर कोरिया की लड़खड़ाई अर्थव्यवस्था
दरअसल, 2017 में उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से पटरी से उतर गई है। विकास दर 20 वर्षों में सबसे खराब दौर से गुजर रहा है। इसके अलावा उत्तर कोरिया का काला बाजार एवं भ्रष्टाचार के चलते यह स्थिति और भी चिंताजनक हो गई है। यहां की अर्थव्यवस्था एक साथ कई चुनौतियों का सामना कर रही है। उत्तर कोरिया को अपनी लड़खड़ाई अर्थव्यवस्था को उबारने को कोई तरीका नहीं दिख रहा है।
चीन की तर्ज पर वैश्विक अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनना चाहता है कोरिया
उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना किम के लिए एक बड़ी चुनौती है। बाजारवाद के दौर में चीन जैसे मुल्कों ने अपनी अर्थव्यवस्था में सुधार किया है। राजनीतिक रूप से भले ही चीन ने बदलाव नहीं किया हो, लेकिन अपनी अर्थव्यवस्था को वैश्विक अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनाया है। चीन का अति प्रिय उत्तर कोरिया भी अब इसी राह में चलने का इच्छुक है।
हालांकि, उत्तर कोरिया के लिए यह राह इतनी आसन नहीं है। उसे वैश्विक अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनने के लिए बहुत सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। दरअसल, उत्तर कोरिया अपने परमाणु कार्यक्रम की वजह से कई दशकों तक देश दुनिया से राजनीतिक एवं आर्थिक रूप से कटा रहा। लेकिन अब किम वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़ने के लिए तैयार हैं। इसके लिए उन्होंने बहुत चतुराई से रास्ते साफ किए हैं। पहले उन्होंने अमेरिका से अपने दोस्ताना संबंध बनाने की पहल की और अब दक्षिण कोरिया के भी करीब आ रहा है। दरअसल, इन दोनों संस्थाआें पर अमेरिका का वर्चस्व है। इसलिए किम ने सबसे पहले अमेरिका से दोस्ती के हाथ बढ़ाए।
उत्तर कोरिया के आर्थिक विकास को मिलेगी गति
आईएमएफ़ और विश्व बैंक की सदस्यता मिलने के बाद उत्तर कोरिया को आखिर क्या फायदा होगा। अगर उत्तर कोरिया इस क्लब में शामिल हुआ तो उसे अपनी अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए विशेषज्ञों की सलाह के साथ उसे तकनीकी मदद हासिल होगी। इसके अलावा उसे इन संस्थाओं से आर्थिक मदद भी मिलेगी। इसके अलावा देश के आर्थिक विकास को गति मिलेगी। इससे उत्तर कोरिया की गरीबी भी कम होगी।
क्या है अवरोध
- उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था अभी पूरी दुनिया के लिए बंद है। उसमें पारदर्शिता का अभाव है। ऐसे में उत्तर कोरियाई नेता किम इन संस्थाओं को अपनी अर्थव्यवस्था मे प्रवेश करने की या तहकीकात करने कितनी इजाजत देंगे यह एक बड़ा सवाल है।
- ऐसे में यह आशंका प्रकट की जा सकती है कि उत्तर कोरिया आखिर इन अंतरराष्ट्रीय एजेंसी को अपना भेद क्यों बताना चाहेगा। खासकर तब जब उससे उसकी व्यवस्था की पोल खुलती हो।
- इसके साथ यहां मानवाधिकार का भी पेच फंस सकता है। इस दिशा में उत्तर कोरिया का परमाणु कार्यक्रम सबसे बड़ी बाधा बन सकता है। उसे अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में यह साबित करना होगा कि उसने परमाणु कार्यक्रम नीति को त्याग कर दिया है। इसके साथ उसे क्षेत्र में शांति स्थापित करने में भी अपने रोल को स्पष्ट करना होगा।
- 1960 के दशक से उत्तर कोरिया ने अपनी अर्थव्यवस्था की कोई जानकारी साझा नहीं की है। उसने अपना कोई आर्थिक डेटा नहीं उजागर किया है। इसके अलावा देश में बड़ा काला बाजार और व्यापक भ्रष्टाचार भी इस राह में एक बड़ी बाधा है।
विश्व बैंक व आइएमएफ
विश्व बैंक विकासशील देशों के लिए वित्तीय सहायता के साथ-साथ जानकारी एवं सुझाव मुहैया कराने वाली सबसे बड़ी संस्था है। किसी भी देश को विश्व बैंक का सदस्य बनने के लिए यह जरूरी है कि वह पहले अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का सदस्य बने। जबकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का मूल मकसद सदस्य देशों को वित्तीय और मौद्रिक स्थिरता को सुनिश्चित करना है। विश्व बैंक सदस्य देशों में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और ग़रीबी को कम करने में मदद करता है। फिलहाल दोनों संस्थाओं का मकसद सदस्य देशाें के आर्थिक कल्याण को बढ़ावा देना है।