इसरो के पूर्व वैज्ञानिक ने बताया- रूस के लूना-25 के मुकाबले चांद पर पहले होगा लैंड चंद्रयान-3

कोलकाता। एक तरफ भारत के अंतरिक्ष संस्थान इसरो की ओर से भेजे गए चंद्रयान-3 ने चांद की कक्षा में प्रवेश किया है, तब आज ही तड़के रूस ने भी चांद के लिए अपना लूना-25 मिशन लॉन्च कर दिया है। इसे बहुत ही शक्तिशाली सोयूज 2.1 रॉकेट से लॉन्च किया गया है, जो लूना 25 को धरती की कक्षा की परिक्रमा के बगैर सीधे चांद के ऑर्बिट में पहुंचाएगा।

चंद्रयान-3 और रूस के लूना-25 को चांद के उसी दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करना है, जहां करोड़ों सालों से सूरज की रोशनी नहीं पहुंची है। हालांकि, दोनों के बीच लैंडिंग की दूरी करीब 120 किलोमीटर की होगी। दोनों के एक ही दिन चांद के सतह पर उतरने के दावे किए जा रहे हैं। एक तरफ भारत के चंद्रयान-3 को चांद पर पहुंचने में करीब 27 दिनों का वक्त लग रहा है, तो लूना-25 केवल 10 से 11 दिनों में चांद पर लैंड कर सकता है। ऐसे में चंद्रयान-3 और लूना-25 में से कौन चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहले उतरेगा, इसे लेकर पूरी दुनिया में चर्चा छिड़ गई है। यह चांद का ऐसा हिस्सा है, जहां आज तक किसी भी देश का लेंडर नहीं पहुंच सका है। ऐसे में चंद्रयान-3 और लूना-25 की लैंडिंग निश्चित तौर पर एक दूसरे की प्रतिद्वंदिता के तौर पर भी देखी जा रही है।

इसरो के पूर्व वैज्ञानिक तपन मिश्रा हिन्दुस्थान समाचार से विशेष बातचीत में कहते हैं कि रूस के चंद्रयान मिशन से हमारे चंद्रयान-3 का कोई मुकाबला ही नहीं है। इसे प्रतिद्वंदिता के तौर पर बिल्कुल नहीं देखा जाना चाहिए। एक तरफ रूस 60 के दशक से अंतरिक्ष अभियानों में अग्रणी है, तो भारत ने अभी शुरुआत ही की है। बहरहाल, भले ही लूना-25 को बहुत ही शक्तिशाली रॉकेट से लांच किया गया हो और इसे चंद्रयान-3 से पहले चांद पर पहुंचने का दावा किया जा रहा है, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि चंद्रयान-3 लूना-25 के मुकाबले अधिक महत्वाकांक्षी मिशन है।

चंद्रयान-3 मिशन की उपलब्धियों के बारे में बिंदुवार बताते हुए तपन मिश्रा कहते हैं, “भारत के इस महत्वाकांक्षी अभियान में केवल 615 करोड़ रुपये का खर्च हुए हैं, जो देश के अंदर एक छोटा सा फ्लाईओवर निर्माण के खर्च के बराबर है। इतनी कम राशि में हमारा मिशन चांद के उस हिस्से के लिए निकला है, जहां दुनिया का कोई देश आज तक नहीं पहुंचा। ऐसे में लूना-25 का चंद्रयान-3 से कोई मुकाबला ही नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि यह तेजी से दुनिया में आगे बढ़ रहे भारत के लिए गौरव का क्षण है जब चंद्रयान-3 तय समय से पहले चांद की सबसे निचली कक्षा में जा पहुंचा है।

चांद के आखिरी कक्ष में तय समय से पहले पहुंच रहा है चंद्रयान

इसके वैज्ञानिक पहलू पर रुख स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि चांद की आखिरी कक्षा में जब चंद्रयान-3 को पहुंचना था, तो उसके काफी पहले उसके कक्ष की गणना कर इसरो के वैज्ञानिकों ने इंजन फायरिंग कर उसे पहुंचा दिया है। ऐसे में अगर इसरो चाहे तो तय तारीख से चार दिन पहले ही मौजूदा साइंटिफिक आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए जीरो एरर के साथ चंद्रयान-3 को शेड्यूल लैंडिंग साइट पर उतार सकता है। दरअसल, इस अति महत्वाकांक्षी मिशन को लूना-25 के प्रतिद्वंदिता से जोड़कर नहीं देखा जा रहा है, इसलिए रिस्क नहीं लिया जाएगा।

चंद्रयान-3 से कई गुना महंगा है रूस का लूना-25 मिशन

उन्होंने कहा कि जितनी कम कीमत में हमारा चंद्रयान चांद पर गया है, उससे कई गुना अधिक कीमत रूस के लूना-25 पर लगी है। इसके अलावा हमारा यह मिशन महज तीन सालों में प्लान किया गया, जबकि रूस ने अपने लूना-25 मिशन को 1990 के दशक से ही प्लानिंग और प्रक्रिया शुरू कर दी थी। इसके अलावा लूना 25 की लांचिंग में कम से कम 160 मिलियन रुपये का खर्च हुआ है, जो चंद्रयान-3 के बजट से कई गुना ज्यादा है। इसीलिए हमारा चंद्रयान मिशन लूना-25 के मुकाबले अधिक महत्वाकांक्षी और देश को गौरवान्वित करने वाला है।

प्रक्षेपण तकनीक भी दुनिया में सबसे किफायती

हिन्दुस्थान समाचार से विशेष बातचीत में तपन मिश्रा बताते हैं कि जैसे लूना-25 को लॉन्च करने के लिए अति शक्तिशाली रॉकेट का इस्तेमाल किया गया जो सीधे धरती की कक्षा से उपग्रह को ले जाकर चांद की कक्षा में प्रवेश करा सकता है। वैसी तकनीक हमारे पास मौजूद नहीं है। बावजूद इसके हमने चंद्रयान-3 को स्लिंगशॉट मेकानिजम के तहत पहले धरती के गुरुत्वाकर्षण की मदद से धरती की परिक्रमा करते हुए कक्षा से बाहर पहुंचाया। उसके बाद चांद की कक्षा में सबसे आखरी वलय तक पहुंचा दिया है।

इस मेकानिजम के बारे में सरल शब्दों में समझाते हुए तपन बताते हैं कि जैसे एक गुलेल में इलास्टिक लगी होती है। उसमें जिस चीज को फायर करना हो उसको डालकर हथेलियों से पीछे खींचा जाता है। उसके बाद मांसपेशियों की ऊर्जा इलास्टिक में जाती है और स्टोर हो जाती है। उसके बाद जब हाथ से गुलेल को छोड़ा जाता है तो इलास्टिक में एकत्रित हुई मांसपेशियों की ऊर्जा एकजुट होकर गुलेल से छोड़े जाने वाली वस्तु को काफी तेज रफ्तार से दूर फेंकती है। इसी तकनीक से चंद्रयान-3 को चांद के दक्षिणी ध्रुव तक पहुंचा दिया गया है। इससे बहुत बड़ी ईंधन की खपत बचाई गई है, जो भारत के वैज्ञानिकों की सूझबूझ और दक्षता को दिखाने वाली है। इसीलिए लूना-25 और चंद्रयान-3 में कोई तुलना नहीं है।

उन्होंने कहा कि इस बार जिस सटीकता से मिशन को अंजाम दिया गया है, वह निश्चित तौर पर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करेगा। उनका दावा है कि वहां बर्फ जमी है और चंद्रयान-3 का मकसद वहां ऑक्सीजन और पानी की खोज है। यही मकसद लूना-25 का भी है, लेकिन रूस को यह अभियान करने में 40 साल लग गए। 47 साल बाद रूस ने अपना चंद मिशन किया है, जबकि भारत में चंद वर्षों में इसे सफलता तक पहुंचा दिया है। इसलिए चंद्रयान-3 मिशन अधिक महत्वाकांक्षी है।

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