पूर्वोत्तर भारतीय राज्य मेघालय में खासी हिल्स स्वायत्त ज़िला परिषद द्वारा पति या पिता के सरनेम को अपनाने वाले लोगों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने से इनकार करने के आदेश की निंदा की जा रही है। खासी संस्कृति में बच्चे अपनी मां का सरनेम अपनाते हैं। आपको बता दें कि खासी संस्कृति में बच्चे अपनी मां का सरनेम अपनाते हैं। पुरुष अपनी पत्नियों के साथ चले जाते हैं और परिवार में सबसे छोटी बेटियां अपने माता-पिता के घरों को विरासत में लेती हैं। हालांकि इसकी आलोचना करने वाले कहते हैं कि ये रीति-रिवाज बहिष्करण और मनोबल गिराने वाले हैं।
वास्तव में खासी हिल्स स्वायत्त जिला खासी सोशल कस्टम ऑफ लाइनेज एक्ट, 1997 भी कहता है कि किसी व्यक्ति के कानूनी रूप से अपनी मां के खासी कबीले से संबंधित होने के लिए, वे या उसकी माता अपने गैर-खासी पिता (या पति) के ‘व्यक्तिगत कानूनों’ को नहीं अपना सकते हैं। केएचएडीसी द्वारा इन मानदंडों को लागू करने के बावजूद कुछ महिला अधिकार समूहों ने चिंता व्यक्त की है कि खासी संस्कृति वास्तव में एक ‘पितृसत्तात्मक समाज’ है। गौरतलब है कि भारत में एसटी एक संरक्षित श्रेणी है, जो अन्य बातों के अलावा अपने सदस्यों को शैक्षणिक संस्थानों, सरकारी नौकरियों और विधानसभाओं में आरक्षण देती है।