होली को राष्ट्रीय पर्व का दर्जा मिले !

नवेद शिकोह
नवेद शिकोह
  • भगवंत मान गए, पत्नी के जाते ही पुनः पीने लगे !
  • भगवंत मान गए- शराब खराब है!

 

मेरे एक मित्र भगवंत होली पर जाम छलका रहे थे और उनके अंदर का हर टैलेंट भी छलक रहा था। गायकी, डांसिंग, एक्टिंग का हुनर दिखा रहे थे। कह रहे थे कि उनके जैसा दार्शनिक दुनिया में कोई नहीं। वो राजनीति की बातें करते-करते भाषण भी देने लगे।

भगवंत मान बैठै कि यदि वो राजनीति में आ जाएं तो कम से कम पंजाब के मुख्यमंत्री तो बन ही सकते हैं। भगवंत मान बैठे हैं कि अब उन्हें जनता की सेवा के सिवा कुछ नहीं करना। मुख्यमंत्री बन गए तो वो अपना जीवन जनता को समर्पित कर देंगे। इतना व्यस्त रहेंगे कि खाने-पीने, दवा-दारू यहां तक कि टॉनिक पीने का समय भी उन्हें सिर्फ हवाई यात्राओं के खाली समय में नसीब होगा।

ख्याली पुलाव और कल्पनाओं की उड़ानें भरते देख मैंने अपने मित्र भगवंत को हक़ीक़त में आने को कहा- यार आज होली है, त्योहार के रंगों की बात करो ! जवाब में भगवंत बोला- क्या होली, होली की ख़ुशी तो सरकारों को होती होगी। होली के दो-चार दिनों में शराब के टेक्स से कितना राजस्व आता है इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है।

मित्र की इस बात में तो दम था लेकिन इसके बाद होली को उन्होंने अपने दार्शनिक अंदाज में राष्ट्रीय पर्व के रुप में पेश किया। उसके तर्क और तथ्य बड़े अजीब थे, वो बोला-

होली का त्योहार राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना भी व्यक्त करता है। राष्ट्रवादियों और समाजवादियों के क्रमशः राष्ट्रवाद और समाजवाद को राष्ट्रहित के सूत्र में बांधता है।

गरीब से लेकर मध्यम वर्ग और अमीर सभी बराबर मात्रा में शराब का ख़ूब टेक्स देकर सरकारों को भारी-भरकम राजस्व देते हैं। सरकारें इस अरबों-खरबों की ये रकम राष्ट्रहित-समाजहित में खर्च करती हैं।

हमारा राष्ट्र अनेकता में एकता की ताक़त का कायल हैं। हम कुछ भी पियें। देशी, विदेशी, रम, व्हिस्की, वाइन, रेड वाइन, वोतका, बियर.. ये अनेक पेय पदार्थ भले ही अलग-अलग रंगों के हों पर सबको उसी मंजिल पर पंहुचाते हैं जहां सब जाना चाहते हैं। हांलांकि नशे की मंजिल पर पंहुचने के बाद कभी-कभी ये मंज़िल अस्पताल या श्मशान भी पंहुचा देती है। श्मशान पंहुचने से दो फायदे है़-एक तो मुक्ति मिलती है, दूसरा हम जाते-जाते देश कि बढ़ती विकराल आबादी को कम करने में छोटी सा ही सही पर अपना योगदान तो दे ही देते हैं।

होली में नशे में टल्ली होने वालों की इतनी बड़ी तादाद अस्पतालों के इमर्जेसी/ट्रामा सेंटरों में पंहुतची है कि साल भर की आम स्वास्थ्य व्यवस्था की जांच-पड़ताल के लिए एक तरह से मॉकड्रिल हो जाता है। ये भी राष्ट्रहित-समाज हित का ही एक नमूना है।

ऐसे हालात में हम सरकारों के कामों को भी जांच परख कर लेते हैं। सुबह हमने दारू खरीद कर राष्ट्रहित के लिए भारी-भरकम जो टेक्स दिया था वो धन जनहित के लिए सरकारी अस्पतालों में व्यापक मात्र में फ्री इलाज के रूप में इस्तेमाल हो रहा है या नहीं ये भी चेक कर लेते हैं।

शराब को महामंडित कर रहे भगवंत की पत्नी सरबजीत को अब रहा नहीं गया। एक प्लेट में कटे हुए नींबू लेकर वो आईं और बोलीं- इसे चाटो और शराब की फर्जी खूबियों के बजाय शराब से होली को अलग रखने के दर्शन पेश करो, नहीं तो हम अब लठमार होली खेलना शुरू कर देंगे।

सरबजीत ने नींबू चाटने के साथ पत्नी की लठमार होली से बचने के लिए हुक्म की तामीर शुरू कर दी, और लम्बा चौड़ा भाषण दे डाला-

प्यारे शराबी मित्रों, भाईयों-बहनों और पिहक्कड़ देशवासियों ! आप सब से गुज़ारिश है कि शराब पीना छोड़ दें। शराब सेहत के लिए, परिवार के लिए, ज़िन्दगी के लिए, समाज के लिए और राष्ट्र के लिए हानिकारक है। होली जैसे पवित्र पर्व में पीने-पिलाने की परंपरा त्याग दीजिए।

बीवी के खौफ और नींबू चाटने का असर भगवंत में साफ नजर आ रहा था और उनके विचार विपरीत दिशा में सकारात्मकता के रंग बिखेर रहे थे, वो आगे बोले-

होली खुशियों का त्यौहार है। ज़िन्दगी जीने की इच्छाओं से बड़ा कोई नशा नहीं होता।  होली जीवन की खुशियों के तमाम रंगों का कोलाज है। गिले-शिकवों को भुलाकर प्यार-मोहब्बत और सौहार्द्र के रंगों की मस्ती में खूब मजें कीजिए। नाचिए-गाइये, रंग खेलिए, गुझिया खाइये, स्वादिष्ट व्यंजन खाइए,खिलाइये। और खूब पीजिए भी, दूध,दही, शर्बत, छांछ, लस्सी, जूस….

ज्ञान देते-देते भगवंत ने बगल के कमरे में झांका। बीवी कहीं जा चुकी थी। उसके चेहरे पर आजादी का भाव आया। दूसरी बोतल की सील तोड़ी। ग्यारहवां पेग बनाते हुए कहा पहले कि सब उतर गई, इसे पहला पैग मानों, चियर्य !

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