नांदी (फिजी)। फिजी के खबूसरत शहर नांदी में 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन के दौरान तीन दिन तक देश-विदेश के विद्वानों ने चर्चा की। सम्मेलन में हिस्सा लेने गए विश्व हिंदी परिषद नई दिल्ली के महासचिव डॉ. विपिन कुमार ने कहा कि विश्व हिंदी परिषद का लक्ष्य हिंदी को 2035 तक विश्व भाषा बनाने का है।
‘हिंदी एवं मीडिया का विश्वबोध’ विषय पर विचार रखे हुए विपिन कुमार ने हिंदी को वैश्विक धरातल पर लाने एवं उसे गर्व का विषय बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों के लिए उनका धन्यवाद किया। उन्होंने कहा कि हिंदी आज ज्ञान-विज्ञान के साथ-साथ प्रौद्योगिकी की भाषा भी बन रही है।
डॉ. विपिन कुमार ने कहा कि जिस देश का मीडिया जितना सशक्त होगा, उस देश की भाषा एवं संस्कृति उतनी ही मजबूत होगी। 21वीं सदी भारत की है। आज से 20-25 साल बाद हम विश्व की श्रेष्ठ अर्थव्यवस्था होंगे। हम न केवल तकनीकी दृष्टि से, बल्कि भाषा एवं संस्कृति की दृष्टि से भी सर्वकालिक महान देश होंगे। इसमें जितना योगदान मीडिया का होगा, उतना ही योगदान भाषा का भी होगा। बोली जाने वाली भाषाओं में मंदारिन के बाद हिंदी विश्व की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है।
उन्होंने कहा हिंदी आज विश्व के लगभग 20 से अधिक देशों में बोली जाती है, इनमें अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, यमन, यूगांडा, न्यूजीलैंड जैसे देश सम्मिलित हैं। भारत की कुल आबादी का लगभग 44 फीसद शुद्ध हिंदी बोलने वाले लोग हैं, अर्थात 53 करोड़ से अधिक लोग शुद्ध हिंदी का प्रयोग करते हैं। बंगाली, मराठी का नंबर उसके बाद आता है।
डॉ. विपिन ने ‘न्यू मीडिया’ की सकारात्मक भूमिका का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि हिंदी को सशक्त बनाने में न्यू मीडिया अर्थात सोशल मीडिया की अहम भूमिका है। जब हम मीडिया की बात करते हैं तो वह महज न्यूज चैनल नहीं है, वह टेलीविजन, सिनेमा और आजकल का न्यू मीडिया भी है। हिंदी भाषा के विकास में मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण है। मीडिया की इस भूमिका से हिंदी वैश्विक भाषा बन चुकी है। भारत एवं भारत से बाहर हिंदी कार्यक्रमों के प्रचार-प्रसार में मीडिया ने महती भूमिका निभाई है।
उन्होंने कहा कि आजकल बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपना उत्पाद बाजार में स्थापित करने के लिए हिंदी मीडिया का भरपूर इस्तेमाल कर रही हैं। हिंदी में प्रचार का अर्थ है, भारत की 50 फीसदी से ज्यादा जनता तक अपने उत्पाद की पहुंच बनाना। हिंदी अब बाजार की भाषा बन चुकी है। यहां तक कि राजभाषा हिंदी भी अपनी सीमाओं से बाहर निकलने लगी है। वह भी विकास, बाजार एवं मीडिया की भाषा बन रही है।
डॉ.विपिन कुमार ने हिंदी एवं मीडिया के बीच अन्योन्याश्रित संबंध बताया। कहा, दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। इस गठबंधन से विश्वकल्याण का मार्ग प्रशस्त हुआ है। जहां मीडिया भाषा निर्माण का कार्य कर रहा है, वहीं भाषा मीडिया को बाजार दे रही है। ‘न्यू मीडिया’ के माध्यम से हजारों मील दूर बैठा व्यक्ति अपनी मातृभाषा हिंदी में लिख कर अपना संदेश अपने लोगों तक पहुंच सकता है।
डॉ. विपिन कुमार ने कहा कि भारतीयों के लिए हिंदी एवं हिंदी मीडिया दोनों ने आत्मगौरव एवं आत्मविश्वास का माहौल बनाया है। हमारे प्रधानमंत्री संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में अपना भाषण देकर उस गौरव को और बढ़ाते हैं।
डॉ. विपिन कुमार ने विश्व हिंदी परिषद के संकल्प-2035 का लक्ष्य, 12 वें विश्व हिन्दी सम्मेलन के प्रतिनिधियों के सम्मुख रखा। उन्होंने कहा कि 2035 तक हिंदी को विश्व भाषा बनाने का लक्ष्य है। लॉर्ड मैकाले ने 1835 में अंग्रेजी भाषा थोपी थी। इसके मद्देनजर परिषद ने 2035 तक हिंदी को विश्व भाषा बनाने का संकल्प लिया है।
डॉ. विपिन कुमार ने राष्ट्रकवि ‘दिनकर’ की निम्नलिखित पंक्तियों से अपने वक्तव्य का समापन किया- “वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल, दूर नहीं है!/थक कर बैठ गये क्या भाई, मंजिल दूर नहीं!!”