- ” शो मस्ट गो ऑन”
- #पखावज की तरह दिनेश की मौत
स्टेज परफॉर्मर से बड़ी स्टेज परफॉर्मेंस होती है। परफॉर्मेंस देने वाला कलाकार परफॉर्म करते हुए मर जाए तो भी शो नहीं रुकता, शो चलता रहता है।
यदि “शो मस्ट गो ऑन” कहावत सचमुच सामने आए तो आप इसे कला की निरंतरता का उसूल कहेंगे या अमानवीयता की मिसाल ??
ये आप बताइए !
लखनऊ की बारादरी में कई बरस से मक़बूल हो रहे सनदकदा कल्चरल फेस्टिवल में ऐसा ही वाक़िया हुआ।
मशहूर पखावज वादक दिनेश प्रसाद पखावज बजाते हुए मर गए लेकिन ये फेस्टिवल चलता रहा। दिनेश की दिल की धड़कनों के साथ पखावज की थाप थमी तो फिर बाद में कोई दूसरा वाद्ययंत्र बजने लगा। कला संस्कृति की इस महफिल में संगीत की स्वरलहरियां किसी कलाकार की अचानक मौत पर भी खामोश नहीं हुई।
फेस्टिवल में दिल को दहलाने वाले पखावज वादक की इस तरह की मौत पर खामोशी बहुत कुछ बयां कर रही है। ना जाने कितने दिनेश प्रसाद पखावज की तरह खामोशी से मर रहे हैं। भारतीय संगीत, संगीत वाद्य और इससे जुड़े कलाकारों की तिल-तिल मौत हो रही है लेकिन कोई इनका पुरसाहाल नहीं। कलाकार चिंताग्रस्त है। भुखमरी की तरफ बढ़ रहे हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रम बेहद कम हो रहे इसलिए कलाकारों को बमुश्किल कम कार्यक्रम मिल रहे। कार्यक्रम मिल भी रहे तो इनकी उतनी क़द्र है जितनी क़द्र सनतकदा फेस्टिवल में पखावज वादक दिनेश की मौत की हुई !
कला समीक्षक रजनीश वैश्य कहते हैं कि तहज़ीब, भावनाओं, फिराक शदिली, कला और कलाकारों के शहर लखनऊ के दिल बारादरी में मशहूर पखावज वादक की इस तरह की मौत पर सन्नाटा कलाकारों के दिलों को बेचैन कर रहा होगा। एक सांस्कृतिक फेस्टिवल में सांस्कृतिक कर्मी की परफॉर्मेंस देते हुए दुखद मौत पर आयोजकों का अहसास भी मरता नजर आया। शोक, कार्यक्रमों में थोड़ा ही विराम या परिजनों की मदद की घोषणा की जो उम्मीद थी फिलहाल ऐसा कुछ नहीं दिखा।
परफॉर्मेंस के दौरान मौत के बाद सनदकदा मातमकदा भी नहीं दिखा। (मातमकदा का अर्थ है मातम यानी ग़म ज़ाहिर करने का स्थान।)