बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में महाराष्ट्र राज्य सरकार से पुलिस हिरासत में कथित तौर पर मारे गए एक व्यक्ति की मां को मुआवजे के रूप में 15 लाख रुपये का भुगतान करने को कहा और साथ ही यह भी कहा कि हिरासत में मौत सभ्य समाज में सबसे खराब अपराधों में एक है।
सुनीता कुटे द्वारा दायर याचिका पर बॉम्बे हाई कोर्ट की जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और अभय वाघवासे की औरंगाबाद पीठ ने हाल ही में अपना यह अहम फैसला दिया है।
याचिका में आरोप लगाया गया था कि उसके 23 वर्षीय बेटे प्रदीप की मौत सोलापुर पुलिस से जुड़े दो पुलिसकर्मियों द्वारा प्रताड़ित करने और हमला करने के बाद हुई थी। कुटे ने पुलिस से 40 लाख रुपये का मुआवजा और दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग की थी।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि पुलिस के पास लोगों की गतिविधियों और अपराध को नियंत्रित करने की शक्ति है, लेकिन यह अबाध नहीं था। फैसले में कहा गया कि उक्त शक्ति के प्रयोग की आड़ में वे किसी नागरिक के साथ अमानवीय तरीके से अत्याचार या व्यवहार नहीं कर सकते।
कोर्ट ने कहा कि राज्य अपने नागरिकों के जीवन का रक्षक है और अगर उसका कर्मचारी सत्ता की आड़ में अत्याचार करता है, तो उसे ऐसे नागरिक को मुआवजा देना होगा। पीठ ने कहा कि वर्तमान मामले में पीड़ित 23 वर्षीय व्यक्ति था, जिसने अपनी मृत्यु से ठीक चार महीने पहले शादी की थी। पीठ ने महाराष्ट्र सरकार को पीड़िता की मां को 15,29,600 रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया।