27 और 28 अगस्त को इलाहाबाद विश्वविद्यालय का हिंदी , अंग्रेजी और उर्दू विभाग सुप्रसिद्ध कवि, शायर फ़िराक़ गोरखपुरी की याद में 2 दिवसीय जयंती समारोह मनाएगा। इस कार्यक्रम का नाम है जश्न ए फ़िराक़ । फिराक साहब का जन्म 28 अगस्त, 1896 को हुआ था। उन्होंने उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हासिल की और बाद में यहीं अध्यापक भी बने।
रघुपति सहाय ‘फिराक गोरखपुरी’ ने 1913 में स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में पास की थी। इसके बाद वे म्योर सेंट्रल कालेज से एफए करने के लिए प्रयागराज आ गए। यहां से पढ़ाई पूरी करके फिराक गोरखपुर चले गए। हालांकि पढ़ाई में वे बहुत तेज थे। 28 सितंबर को 1918 को फिराक को डिप्टी कलेक्टर के पद पर मनोनीत किया गया था। उन्होंने चार्ज लिया ही था कि एक इंटरव्यू के बाद उन्हें आईसीएस के लिए चुन लिया गया। बाद में उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया था और स्वतंत्रता आंदोलन में कूद गए थे। छह दिसंबर 1920 को उन्हें गिरफ्तार किया गया था और प्रयागराज की मलाका जेल में रखा गया था। वहीं उन पर मुकदमा चला कर डेढ़ वर्ष की कैद तथा सौ रुपये के जुर्माने की सजा मिली थी।
जवाहर लाल नेहरू गोरखपुर गए तो फिराक के घर ही रूके थे। नेहरू ने उन्हें बिना बताए ढाई सौ मासिक वेतन पर प्रयागराज में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का इंटर सेकेट्री बना दिया। इस तरह रघुपति सहाय फिराक गोरखपुर से प्रयागराज आ गए। वे इस पद पर लगभग चार वर्ष तक रहे। हर रोज आनंद भवन जाने के कारण फिराक को अपनी योग्यता प्रदर्शित करने मौका मिला था। यहां उनकी राष्ट्रीय नेताओं से उनकी जान पहचान हो गई। 1923 से 1928 तक वे लगभग हर दिन आनंद भवन जाते थे। वे महात्मा गांधी का अत्यधिक सम्मान करते थे लेकिन उनकी विचारधारा तथा कार्यक्रमों से सहमत नहीं थे।